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________________ 24 साच वयसेति वयसीरभेदाध्यवसाय मूलातिशयोक्तिपूला चेत्येषां परः // 32 // (अब न कमें दमयन्तीके मनोमिलापका वर्णन करते हैं- ) जिस प्रकार मर्पमझो पक्षो अर्थात् गरड़मे ढोया जाता हुमा प्रद्युम्न बलपूर्वक विरोवन-पोत्र ( अर्थात् बल. पुत्र बाणासुर ) के पग्निसे व्याप्त ( शोणितपुर नामक ) नगरमें प्रविष्ट हुआ था, उसो प्रकार मोग-विलासकारो यौवन अवस्थामे प्रात कामदेव ( कथाप्रमों में तथा वन्दिवारणादिके मुखसे सुने गये एवं चित्रादिमें देखे गये ) नलसे माकान्त अपार आकृष्ट दमयन्तीके मन में प्रविष्ट हुमा॥ 32 // पौराणिक कथा-बलिपुत्र बाणासुर को पुत्रो 'उषा' ने स्वप्न में प्रद्युम्नकुमार अनिरुद्धको देखकर नागने के बाद स्वप्नत्तानको 'चित्रलेखा' नामकी अपनी सखीसे कहा। योग. पण्डिता चित्रलेखाने उसो रातको योगबल से द्वारकापुरामें जाकर सोते हुए अनिरुद्धको लाकर उसके साथ सनम करा दिया। कुछ समयके बाद नारद मुनिसे बागार के द्वारा अनिरुद्धके रोके जाने का समाचार पाकर अनिरुद्धक' छुड़ाने के लिए राम तथा प्रद्युम्नके साथ श्रीकृष्ण भगवान् गाड़पर चढ़कर शोणितपुर नामको बाणासुरको अग्निरिवेष्टित नगरीमें गये / यह कथा विष्णुपुराणमें है। नृपेऽनुरूपे निजरूपपम्पदा दिदेश तस्मिन् बहुशः अति गते / विशिष्य सा भोमनरेन्द्रनन्दना' मनोभवाझंकवशंवदं मनः / / 33 / / इह विरहिणां चतुःप्रीत्यादयो दशावस्थाः सन्ति, तत्र चतुःप्रीतिः श्रवगानुराग. स्याप्युपलसगमतस्तरपूर्षिका मनःसनास्यां हितोयामवस्थामाह-नृप इत्यादि। सा भीमनरन्द्रनन्दना दमयन्ती नन्दादिस्वायुप्रत्ययः। निजरूपसम्पदा स्वला: वष्यसम्पत्तो नामनुरूपे बहुशः। 'बहपाज्छस्कारकादायतरस्यामि'यादानार्थ शस्प्रत्ययः। श्रुति श्रवणं गते एतेन श्रवगानुराग उकः, तस्मिन् नृपेनले मनो. भवाज्ञाया एकं वशंवदम् एकस्यैव विधेये शिवभागवनवत् समासः / 'प्रियवशे वरःख' 'अरुषिदित्यादिना तस्य मुम् / मनो विशिष्य दिदेश अस्येदमिति राजाधिराज मीम की पुत्री ( दमयन्ती ) ने ( चारण-वन्दो आदिके मुखसे एवं कथादि. प्रसाने ) अनेक बार सुने गये तथा अपनी रूप-सम्पत्तिके योग्य उस राजा (नक ) में मनको विशेष रूपसे कामाशाका वशंवद बना दिया अर्थात् दमयन्तोका मन उक्तरूप नलमें कामके वशीभूत हो गया // 33 // उपासनमित्य पितुस्स्म रज्यते दिने दिने सावसरेषु वन्दिना / पठत्सु तेषु प्रति भूमनोनलं विनिद्रामाजनि शृण्वती नलम् / / 34 / / त्यनुप्राणितेति सङ्करः' इति जीवातुः, इत्याहुः / 1. '-नन्दिनी' / इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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