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________________ सप्तमः सर्गः। 406 पातिनीस्युत्प्रेक्षा / तत् तस्मात् तदन्तःपातिस्वात् इहास्यां दमयन्त्यां गुल्फो पाद. ग्रन्थी / 'तद्ग्रन्थिधुटिके गुल्फो' इत्यमरः / तयोद्वयेनाप्ता प्राप्ता या च सा अदृश्य. सिद्धिश्च यदश्यसिद्धिः येयं गुल्फयोरहश्यत्वसिद्धिरित्यर्थः / सतीति शेषः / यत्तदो. नित्यसम्बन्धात्सा उचितैव तत् सम्बन्धिनोऽपि तद्वत सिद्धिर्यक्तैवेत्यर्थः ।गूढगल्फरवं सीलक्षणं तदस्यामस्तीति भावः // 97 // __ अरुन्धती, कामपत्नी, रति, लक्ष्मी, इन्द्राणी तथा नव मातृकाएँ इनकी चौदहवीं यह दमयन्ती है, अतः उनकी जो अदृश्य सिद्धि है, वह इस दमयन्तीमें गुल्फ ( दोनों पैरों के नीचे जोड़पर दोनों ओर उठी हुई हड्डी अर्थात् गड्ढों ) को प्राप्त हुई है, वह उचित ही है / [ नव मातृकाएं-चामुण्डा आदि सप्त' माताएं और गौरी तथा सरस्वती-ये नव मातृकाएं हैं, अथवा-ब्रह्माणी, माहेशी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, माहेन्द्रो, चण्डिका और महालक्ष्मी नवमातृकाएं हैं / 'अरुन्धती आदि तेरह महादेवियोंको जिस प्रकार अदृश्य सिद्धि प्राप्त है वैसी ही चौदहवीं दमयन्तीके भी गुल्फोंमें अदृश्य सिद्धि प्राप्त है। अथवाअरुन्धती आदिको पातिव्रत्य धर्मके कारण जो अदृश्य सिद्धि प्राप्त है वह इस दमयन्ती के गुल्फोंमें प्राप्त हैं अर्थात् उनकी सिद्धि इस दमयन्तीके चरणोंपर लोटती है, अतएव उनसे भी यह दमयन्ती अधिक पतिव्रता है / अथवा-अरुन्धती आदिके गुल्फोंमें प्राप्त जो अदृश्य सिद्धि हैं, अर्थात् उनके गुल्फकी हड्डियां नहीं दिखलाई पड़तीं वह सिद्धि चौदहवीं इस दमयन्तीमें भी है अर्थात यह दमयन्ती मी गुल्फोंकी हड्डियोंके नहीं दिखलाई पड़नेसे अरुन्धती आदिके समान ही सामुद्रिकशास्त्रोक्त सुलक्षणावाली है / अथवा-अरुन्धती आदि तेरहों महादेवियोमें तो जो सिद्धि हैं वह सामान्य है क्योंकि यह दमयन्ती उनमें चौदहवीं है अर्थात् चतुर्दशी तिथि रूप है और उक्त अरुन्धती आदि तेरह देवियां प्रतिपदादि त्रयोदशी तिथि पर्यन्तके समान हैं, अत एव चतुर्दशी तिथिरूप इस दमयन्तीमें तो सिद्धि गुब्फोंमें प्राप्त है अर्थात् चरणों में लेटती है / या आप्त ( कभी नहीं व्यभिचरित होनेवाली अर्थात् बिल्कुल नियत) है, अत एव दमयन्ती उन अरुन्धती आदि महादेवियोंसे भी विशिष्ट है। दमयन्तीके पैरके दोनों गट्टोंके छिपे हुए होनेसे यह दमयन्ती सामुद्रिक शास्त्रके अनुसार शुभ लक्षणसे युक्त है ] // 97 // अस्याः पदी चारुतया महान्तावपेक्ष्य सौम्याजवभावभाजः। जाता प्रवालस्य महीरुहाणां जानीमहे पल्लवशब्दलब्धिः / / 98 // 1. तदुक्तम्- "म्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा। वाराही च तथेन्द्राणी चामुण्डा सप्त मातरः॥" इति / 2. तदुक्तमागमे-"ब्रह्माणी चैव माहेशी कौमारी वैष्णवी तथा। वाराही नारसिंही च माहेन्द्री चण्डिका तथा।। महालक्ष्मीरिति प्रोक्ताः क्रमेणेता नवाम्बिकाः॥” इति /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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