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________________ प्रथमः सर्गः। स्थळ नहीं बना दिवा' इस प्रकारके दोनों पोरके काकपक्ष ( बंधे हुए केशकलाप ) रूपं मेरे दो अपयश शिरपर स्थित है ऐसा उस नलने माना। [मपयशका काला एवं शिर पर स्थित होना लोकप्रसिद्ध है। दो काकपक्षका उक्तरूप दो अपपश होने की कल्पना को गयी है / // 16 // अजनमभ्या'समुपेयुषा समं मुदेव देवः कविना बुधेन च / दधौ पटीयान समयं नयनयं दिनेश्वरश्रीरुदयं दिने दिने / / 17 // अस्य विद्वजनसम्माननामाह-अजनमिति। दिनेश्वरस्पेन श्रीर्यस्य, अन्यत्र दिने ईश्वरस्येव श्रीः यस्य तयाभूतः पटीयान् समर्थतरः अयं देवो राजा सूर्यश्च 'देव: सूर्ये यमे राज्ञीति विश्वः / अजवं सततम् अभ्यासं सानिध्यम् उपयुषा प्राप्तवता सहचारिणा इति यावत् , 'उपेयिवाननाचाननूचानश्चेति निपातः। कविना काव्य. शास्त्रविदा पण्डितेन शुक्रेण न बुधेन विदुषा धर्मशासादिदशिनेति भावः, सौम्येन च समं सह मुदैव भानन्देनैव न तु दुःखेनेत्येवकारार्थः समयं नयन् अतिवाहयन् रिने दिने प्रतिपादनम् उदयम् अभ्युबतिम आविर्भाष दधौ धारयामास / अत्र रवाधारः / 17 // बुद्धिमान् , सयंतुल्प तेजस्वी राणा नल निरन्तर अभ्यास करनेवाले कवि तथा पण्डित (काव्यरचयिता तथा पाकरणशाता) के साथ हर्षपूर्वक समयको म्यतीत करते हुए प्रतिदिन समृश्किो ग्स प्रकार प्राप्त कर रहे थे, जिप्त प्रकार निरन्तर समीपमें स्थित शुक तथा पुष नामक ग्रहदयके सा समयको व्यतीत करते हुए तेजस्वी सूर्य प्रतिदिन उदयको प्राप्त करते हैं। [सर्यके समीपमें शुक्र तथा बुध प्रहका सर्वदा रहना ज्योतिःशास्त्र में वर्णित है ] // 17 // अघो विधानात् कमलप्रवालयाश्शिरस्सु दानादखिलझमाभुजाम् / पुरदमूर्ध्व भवतीति वेघसा पदं किमस्याङ्कितमूबरेखया / / 18 / / अध इति / कमलप्रवालयोः पद्मपल्लवयोः कर्मभूसयोः अधोविधानात् अधः करणात् न्यकरणादिति यावत् / तथा अखिलानां सवंषा समाभुजां प्रतिकूलवत्तिनां राज्ञां शिरःसु दानात विधानात इदम् अस्य नलस्य पदम् ऊर्ध्वम् उस्कृष्टम् ऊर्ध्वः स्थितञ्च पुरा भवति मविप्यतीत्यर्थः / यावत् पुरानिपातयोलट' इति पुराशब्दयों गात् भविष्यदर्थे लट् / इति इदं मरवा इति शेषः, गग्यमानार्थस्वाइप्रयोगः / वेधसा विषात्रा को ऊर्वरेखया अहितं चिह्नितं किम् ? 'ऊवं खाङ्कितपदः सत्कर्ष मजेत् पुमानि'ति सामुद्रिकाः / सौन्दर्यसुलक्षणाभ्यां युक्तमस्य पदमिति भावः // 8 // (अब सामुद्रिक लक्षणका वर्णन करते हैं- ) 'यह (नल चरण) कमक तथा प्रवाल (मूंगा, या नवपल्लबको ) को नीचा करनेसे और समस्त राबायों के शिरपर रखे जाने से 1. 'मभ्याश-' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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