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________________ 312 नैषधमहाकाव्यम् / दमयन्तीके विरहसे अत्यन्त कृश यह ( नल ) अन्तःपुरसे घूमते-घूमते अत्यन्त थककर प्रासाद-समूहों के पास की भूमिमें बार-बार विश्राम किये / [ जैसे अत्यन्त दुर्बल व्यक्ति एक घरमें भी चलते चलते थककर बार-बार विश्राम करता है, वैसे विरहदुर्बल नलका भी वैसा करना उचित ही है // बहुत देरतक धूमते-घूमते थककर नल एक जगह बैठकर विश्राम करने लगे] // 36 // उल्लिख्य हंसेन दले नलिन्यास्तस्मै यथादर्शि तथैव भैमी / तेनाभिलिख्योपहृतस्वहारा कस्या न दृष्टाजनि विस्मयाय // 30 // किं चात्र विश्रान्तो विनोदाय भैमीप्रतिकृतिमालिख्याद्राक्षीदित्याह श्लोकद्वयेनउलिख्येति // नन्वदृष्टपूर्वा तां कथमलिखदिति शक्तां निरस्यबाह-पूर्व हंसेन नलिन्या दले भैमी यथा येन प्रकारेण उल्लिख्य तस्मै नलायादर्शि दर्शिता / तथैव तेन नलेन अभिलिख्य उपहृतस्वहारा कण्ठार्पितनिजमुक्ताहारा, तदा विलिखिते. त्यर्थः। दृष्टा सती कस्या विस्मयाय नाजनि न जाता, सर्वस्या अपि जाते. त्यर्थः॥३७॥ हंसने कमलके पत्तेपर चित्र बनाकर जैसी दमयन्तीको नलके लिये दिखलाया था, (विश्राम करते समय बैठे हुए ) उस नलने वैसा ही चित्र बनाकर उस (चित्रगत दमयन्ती) को अपना हार पहना दिया, हार पहनी हुई चित्रगत उस दमयन्तीको देखकर किस स्त्रीको आश्चर्य नहीं हुआ ? अर्थात् सभीको आश्चर्य हुआ। [ थककर विश्राम करते हुए नलने मनोविनोदके लिये पहले हंसके द्वारा कमलपत्रपर चित्रित दमयन्तीके समान ही दमयन्ती का चित्र बनाकर उसे अपना हार पहना दिया, उसे देख सभी अन्तःपुरकी स्त्रियां 'किसने राजकुमारीका चित्र बनाकर हार पहना दिया ?' इस प्रकार आश्चर्य करने लगों ] // 37 // कोमारगन्धीनि निवारयन्ती वृत्तानि रोमावलिवेत्रचिहा। सालिख्य तेनैदयत यौवनीयद्वाःस्थामवस्था परिचेतुकामा // 8 // कौमारेति // तेन नलेन यौवनस्येयं यौवनीया। वृद्धाच्छः / तस्यां द्वारि द्वारे, प्रमुखे च तिष्ठतीति यौवनीयद्वाःस्था। "खरवसानयोर्विसनीयः" इति रेफस्य विसर्जनीये तस्य वा सत्वम् / तामवस्थां दौवारिकदशां यौवनप्रवेशदशां च, परिचे. तुकामा अभ्यसितुकामा / अत एव रोमावलिरेव वेत्रं दण्डः तचिह्नं यस्याः सा। कौमारगन्ध एषामस्तीति कौमारगन्धीनि शैशवसंस्पर्शानि, वृत्तानि चापलानि, निवारयन्ती सा दमयन्ती आलिख्य ऐचयत / ईक्षतेः कर्मणि लङ् / वयःसन्धौ वर्तमानान्तामालिख्य अद्राक्षीदित्यर्थः / रूपकालङ्कारः // 38 // बाल-सम्बन्धी कुछ-कुछ आचरणों (चञ्चलता या बाल्यक्रीड़ा आदि ) को निवारण करती (छोड़ती ) हुई रोमावलीरूप बेतको छड़ीके चिहसे युक्त तथा युवावस्थासम्बन्धी द्वारपर स्थित अवस्थाको स्वीकृत या उससे परिचय करनेकी इच्छा करनेवाली दमयन्तीको लिख (चित्रित ) कर नल देखते रहे / [ दमयन्ती का बाल्य समाप्तप्राय है तथा वह अब युवा
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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