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________________ 304 नैषधमहाकाव्यम् / प्रापितेन चटुकाकुविडम्बं लम्भितेन बहुयाचनलज्जाम् | अर्थिना यदघमीत दाता तन्न लुम्पति विलम्ब्य ददानः॥८४॥ शीघ्राप्रदाने दोषमाह-प्रापितेनेति / चटुकाकुभ्यां चटूकिकाकुयोगाभ्यां कर• णाभ्यां, विडम्बं विडम्बना हास्यत्वं, प्रापितेन, दात्रेति शेषः / बह्वधिकं, यथा तथा याचनेन देहीति वादेन, लज्जा लम्भितेन प्रापितेन, अत्रापि दात्रेति शेषः / आर्थिना करणभूतेन, उक्तरूपेणार्थिपीटनेनेत्यर्थः। यदघं पापमर्जति सम्पादयति, विलम्ब्य ददानो दाता, तबधं न लुम्पति न विहन्ति / तस्य पापस्य प्रायश्चित्तमपि नास्तीत्यर्थः // 84 // विलम्बसे दान देने वाला दाता चाटु ( 'मुझे कुछ दान दीजिये' इस प्रकार बार बार कहना अथवा-प्रियभाषण यथा-'आप बड़े धर्मात्मा हैं, दानी हैं। इत्यादि वचन ) यथा काकु ( दीनतापूर्ण वचन, यथा-'आप कृपापूर्वक मुझे कुछ देवें, मैं बहुत निर्धन एवं दुखित हूँ' इत्यादि वचन ) से हास्यपात्रता (या परामव) को प्राप्त करानेवाला और बहुत याचना करनेसे लज्जाको प्राप्त करानेवाला ( दाता ) याचकके द्वारा ( या याचकके कारणसे ) जिस पापको प्राप्त करता है, उसे ( दान के द्वारा) दूर नहीं करता (दान करनेसे उस पापका प्रायश्चित्त नहीं होता)। [ 'प्रकाश'-टीकाकारने-तृतीयान्त पदोंको भीं का विशेषण मानकर-चाटु तथा दोन वचन कहनेसे पराभूत तथा अनेक बार याचना करनेसे लज्जित दाता अर्थीसे जो पापार्जन करता है उस पापको दूर नहीं करता है। विलम्बसे दानको देनेवाला पुण्यार्जनके स्थानपर पापार्जन करता है। अतः शीघ्रातिशीघ्र दान करना ही श्रेयस्कर है ] // 84 // यत्प्रदेयम्पनीय वदान्यैर्दीयते सलिलमथिजनाय / याचनोक्तिविफलत्वविशङ्कात्रीसमूर्छन चकित्सितमेतत् // 5 // पदिति / वदान्यतृभिः, प्रदेयं देयद्रग्यमुपनीयार्थिजमाय सलिलं दीयत इति यत / एतरसलिलदानं याचनोकिविफष्ठत्वविशया देहीति पादवैफल्यशष्या त्रासो भयं तेन यन्मूर्छनं तस्य चिकित्सितमित्युस्प्रेक्षा। अन्यथा किमयं तस्सलिलदान. मिति भावः // 85 // दान योग्य वस्तुको ( याचकके ) समीप लाकर दान करनेवाला जो याचक के लिये ( उसके हाथपर सङ्कल्पका ) जल देता है, वह ( जलदान कार्य ) याचनाकी उक्तिके निष्फल होनेकी शंकासे उत्पन्न भयसे होनेवालो मूछोंको चिकित्सा है। ( पाठभेद-प्रार्थना या वह याचना) की उक्तिको निष्फलताको शंकासे बढ़नेवाली अकाल मृत्युको चिकित्सा है ) / [मूर्छा मानेवाले व्यक्तिपर पानी छिड़ककर जिस प्रकार उसकी मूर्छाकी चिकित्साकर 1. 'त्रासमूच्छंदपमृत्युचिकित्सा' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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