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________________ 21 भूमिका उपर्युक्त दोनों ग्रन्योंके इस वर्णनमें जहां पार्वती स्वयं दर्पण लेकर अपने मण्डन. विधिके बाद अपना सौन्दर्य निरीक्षण कर रही है, वहां दमयन्तीको एक ही नहीं, किन्तु दो-दो सखियां दर्पण दिखला रही है। इत्यादि वर्णनश्रेष्ठता स्पष्टतः प्रतिमासित होती है। आगे और देखिये, कुमारसम्भव तथा नैषषचरितमें पतिके कहनेपर बधुमोको ध्रुवदर्शन करनेका क्रमशः इस प्रकार वर्णन है। 'प्रवेण भर्ना ध्रुवदर्शनाय प्रयुज्यमाना प्रियदर्शनेन / सा इष्ट इत्याननमुखमय्य हीसमकण्ठी कथमप्युवाच // ' (785 ) 'ध्रुवावलोकाय तदुन्मुखभ्रवा निर्दिश्य पत्याऽभिदधे विदर्भजा। किमस्य न स्यादणिमानिसापिकस्तथापि तथ्यो महिमागमोदितः // ' (15 / 38) आगे चलकर विवाहके अनन्तर पुत्री तथा दामादको बिदा कर उन्हें कुछ दूर पहुँचा. कर वापस लौटते हुए राजा भीमने दमयन्तीके लिये सामयिक उपदेश दिया है, वह नारीजनों के लिए अक्षरशः पालनाय है। वे सजलनयन होते हुए दमबन्सीसे कहते हैं कि'हे पुत्रि! अपना अर्थात तुम्हारा पुण्य हो तुम्हारा पिता है, सहनशीलता हो आपत्ति. विनाश करनेवाली है, मनस्तुष्टि हो सारी सम्पत्ति है और ये नल हो तुम्हारे सब कुछ हैं, इसके अतिरिक्त मैं तुम्हारा कोई नहीं हूँ' 'पिताऽऽरमनः पुण्यमनापदः क्षमा धनं मनस्तुष्टिरथाखिलं नलः / अतः परं पुत्रि! न कोऽपि तेऽहमित्युदश्रुरेष व्यसृजनिजौरसीम्॥ (16 / 117) विवाहोत्तर पति ही नारीका सर्वस्व है, ऐसा कहकर महाकविने थोड़े शब्दों में ही मारतीय संस्कृतिका महत्तम आदर्श प्रदर्शित किया है। बारातके वापस लौटनेपर कन्यापक्षवालोंने 'बारातियोंका कैसा भादर-सत्कार किया और कौन सा कार्य किस प्रकार हुआ' यह जानने के लिए वरपक्षके गृहस्थित स्वचन बहुत उत्कण्ठित रहते हैं, साथ ही बारातियोंको भी अपने घरका समाचार जाननेको उत्कण्ठा रहती है और जब दोनोंका प्रथम मिलन होता है तब वे परस्पर में एक दूसरेके द्वारा संक्षेपतः समाचार कहते-सुनते आगे बढ़ते हैं। यहाँ भी नलके विवाह करके वापस लौटने पर राजधानीमें नियुक्त मन्त्री आदि नवदम्पतिको अगवानी करने बाते है तो परस्परमें एक दूसरेका समाचार संक्षेपमें सुनते हुए राजधानीमें प्रवेश करते हैं 'कियदपि कथयन् स्ववृत्तजातं श्रवणकुतूहलचखलेषु तेषु / कियदपि निजदेशवृत्तमेभ्यः श्रवणपथे स नयन् पुरी विवेश // ' ( 16 / 124) नलके राजपानीमें लौट जाने के बाद स्वर्गको वापस जाते हुए इन्द्रादि देवताभोंसे कहि आदि का साक्षात्कार होता है, उसमें कलिके सहचरोंका कविने ऐसा वर्णन किया है कि उनका स्वरूप हो पाठकों के समक्ष दृष्टिगोचर-सा होने लगता है। उनमें लोमका कितना मार्मिक वर्णन है . 'दैन्यस्तन्यमया नित्यमस्याहारामयाविनः /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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