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________________ 154 नैषधमहाकाव्यम् / ('दूसरेको छोड़कर तुम नलके ही योग्य हो' यह संकेत करता हुआ राजहंस कहता है-) मर्यादाहीन स्त्री-सम्बन्धी गुण समुद्रकी प्रवाहरूपा अर्थात् परमरमणीयतमा तुम नलके अतिरिक्त दूसरेके साथ समागमके योग्य नहीं हो, क्योंकि अत्यन्त कड़ी (रूखी) कुशकी रस्सीसे कोमलमल्लिका की माला नहीं गुथी जाती है / [ तुम मल्लीषुष्पके समान कोमल हो तथा नलभिन्न पुरुपलोग कुशकी रस्सीके समान रूखे एवं कड़े हैं अतः नलेतर किसी पुरुषसे तुम्हारा समागम न होकर नलके साथ ही होना योग्य है / / 49 // विधि वधूसृष्टिमपृच्छमेव तद्यानयुग्यो नलकेलियोग्याम् / / त्वमामवणों इव कर्णपीता मयाऽस्य संक्रीडति चक्रनके || 50 / / विधिमिति / किं च, विधि ब्रह्माणं नलस्य केले. क्रीडायाः योग्यामहां वधूसृष्टिं स्त्रीनिर्माणं तस्य विधेर्यानस्य रथस्य युग्यो रथवोढा तत्र परिचित इत्यर्थः / 'तद्वहति रथयुगप्रासङ्गमिति यत्प्रत्ययः / अहमपृच्छमेव, दुहादित्वाद् द्विकर्मकत्वम् / नया अस्य तयानस्य चक्रचक्रे रथाङ्गबजे संक्रीडति कूजति सति 'समोऽकूजन' इति वक्तव्येऽपि कूजते त्मनेपदम् , स्वनामवर्णा मया कर्णेन पीताः गृहीताः। न केवलं लिङ्गात् किन्वागमादपि ज्ञातोऽयमर्थ इत्यर्थः // 50 // (अब राजहंस प्रकारान्तरसे नल-प्राप्तिको और भी अधिक दृढ़ करता हुआ कहता है-) ब्रह्माकी सवारीको ढोते हुये मैंने नलकी क्रीडाके योग्य स्त्रीरचनाको पूछा था 'आपने नलके योग्य किस स्त्रीकी रचनाकी है' यह बात उनकी सवारी को ढोते हुए मैंने पूछी थी तो ब्रह्माके रथके पहियेके शब्द करते रहने पर तुम्हारे नामके अक्षरके समान ही मैंने सुना था। [ 'कदाचित् दमयन्ती नलको नहीं चाहती हो तो ब्रह्माका वचन असत्य हो जायेगा' इसलिए राजहंसने ब्रह्माके रथके पहियेको शब्द करते रहना कहकर उसके हृद्गताभिप्राय जानने तक दमयन्तीका नलके साथ विवाह होनेकी बातको पूर्णतः निर्णयात्मक करके नहीं कहा है ] // 50 // अन्येन पत्या त्वयि योजितायां विज्ञत्वकीर्त्या गतजन्मनो वा। जनापवादाणवमुत्तरीतुं विधा विधातुः कतमा तरी स्यात् ? // 51 // अन्येनेति ! किंच, अन्येन नलेतरेण पत्या त्वयि योजितायां घटितायां सत्यां विज्ञत्वकीर्त्या गतजन्मनः अभिज्ञत्वख्यात्टौ / नीतापो विधातुर्वा जनापवादार्णवमुत्तरीतुं निस्तरीतुं 'वतो वेति दीघः। कतमा विधा कः प्रकारः तरी तरणिः स्यात् ? न काऽपीत्यर्थः / 'स्त्रियां नौस्तरणिस्तरिः' इत्यमरः! अतो देवगत्याऽपि स एव ते भतेति भावः // 51 // (नल-प्राप्तिको पुनः दृढ़ करता हुआ राजहंस कहता है-) दूसरे पतिके साथ तुम्हारा समागम करानेपर सर्वज्ञत्वकी कीर्तिसे पूरी जिन्दगी बितानेवाले ब्रह्माके लिए लोकापवादरूप समुद्रको पार करने के लिए कौन सी नाव होगी। [भा तक ब्रह्मा योग्य स्त्री
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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