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________________ नैषधमहाकाव्यम् / चभेदः / अत्र चमत्कारिस्वान्मालाचाररूपरवाच सर्वत्र सङ्गीतश्लोकेवानन्दशब्द प्रयोगः, यथाह भगवान् भाष्यकार:-'मङ्गलादीनि मङ्गलमयानि मजलान्तानि विहितानि शास्त्राणि प्रथन्ते वीरपुरुषाण्यायुष्मरपुरुषाणि च भवन्ति अध्येतारश्च प्रवकारो भवन्तीति / वसन्ततिलकावृत्तम् 'उका वसन्ततिलका तभजा जगी ग' इति लक्षणात्। सन्तत्वाद् वृत्तभेदः, यथाह दण्डी-'सगैरनतिविस्तीर्णैः श्राव्य. वृत्तः सुसन्धिमिः / सर्वत्र मिसान्तैरुपेतं लोकरञ्जनम् // ' इति // 14 // ____ उस ( हंस ) ने चक्राकार (गोल) भ्रमण करने के कपटसे ( हंसके छूटने के इर्षसे ) भारती करते हुए अपने वान्धवों को पहले ( पकड़े जानेपर ) शोकसे निकलते हुए नेवाश्रु. प्रवाहवालों को ( तथा छूटनेपर ) भानन्दजन्य हर्षाश्रुसे युक्त कर दिया। [राजा नलके दारा इसके पकड़े बानेपर उसके सहचर बन्धु पहले रोकर तथा उस सके छूटनेपर हर्षित होकर माँस बहाने लगे और इसके चारों ओर मँडराते ( चक्कर काटकर आते) हुए ऐसे प्रतीत होते थे, मानों वे बन्धनमुक्त हंसकी आरती कर रहे हों। कोकमें मी किसी इष्ट बन्धुके पकड़े जाने पर लोग दुःखसे मांसू बहाते हैं तथा छूटने पर हर्षसे आँसू बहाते है तथा उस कारागारादिके बन्धनसे मुक्त इष्ट पन्धुकी आरती करते हैं ] // 144 // श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषवे जितेन्द्रियचयं मामलदेवी च यम् | तचिन्तामणिमन्त्रचिन्तनफले शृङ्गारभङ्गथा महा काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते सर्गोऽयमादिर्गतः // 145 / / अथ कविःकाव्यवर्णनमाश्यातपूर्वकं सर्गसमाप्तिं श्लोकबन्धेनाह-श्रीहर्षमिति। कविराजराणिमुकुटानां विच्छेष्ठश्रेणीमुकुटानाम् अलधारभूतो हीरो बज्रमणिः हीरो नाम विहान् श्रीहर्षनामानं यं सुतं सुषुवे जनयामास, मामझदेवी नाम स्वमाता सा च यं सुतं सुषुवे, तस्य श्रीहर्षस्य यश्चिन्तामणिमन्त्रः तस्य चिन्तनमुपासना तस्य फले फलभूते शृङ्गारमनपा शृङ्गाररसेन चारुणि निषधानां राजा नैषधो नलः तदीयचरिते नलचरितनामके महाकाव्ये अयमादिः प्रथमः सर्गो गतः समाप्त इत्यर्थः / एवमुत्तरत्रापि द्रष्टव्यम् // 145 // इति 'मल्लिनाथसूरि विरचितायां 'जीवातु'समास्यायो नैषधटीकायां प्रथमः सर्गः समाप्तः // 1 // कविराज-समूहके मुकुटके अलङ्कारके हीरा 'श्रीहीर' तथा 'मामल्लदेवी'ने इन्द्रियसमूहको बोतनेवाले जिस 'श्रीहर्ष'को उत्पन्न किया, उसके चिन्तामणि मन्त्र ( 14.85) के चिन्तन (जपादि) के फलस्वरूप, शृङ्गार रचनासे मनोहर 'नैषधीय चरित' नामक महाकाव्यमें प्रथम सर्ग समाप्त हुभा // 145 // यह 'मणिप्रमा' टीकामें 'नैषधचरित' का प्रथम सर्ग समाप्त हुआ // 1 //
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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