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________________ 76 नैषधमहाकाव्यम् / उदिता उता सती वदेवअर्थस्प दुहादिस्वादप्रधाने कर्मणि कः पचिस्वपीत्यादिना सम्प्रसारणं, हे लोलाति! दशदिशां मुखानि शून्यान्यलचयाकाराणि विलोकयिष्यसि असंशयं सन्देहो नास्तीत्यर्थः / अर्थाशवण्ययीभावः, पतेति खेदे // 19 // और हे कोलाक्षि ( स्वभावतः चपक-नेत्रवाली प्रिये) ! आज अपने झुण्डवाले हंसोंसे वज्रप्रहारसे तुल्य मेरे वृत्तान्त ( मृत्यु-समाचार ) को कहने पर खेद है कि तुम दशों दिशाओं को सूना देखोगी / / 139 / / ममैव शोकेन विदीर्णवक्षसा त्वयाऽपि चित्राङ्गि ! विपद्यते यदि / तदस्मि देवेन हतोऽपि हा हतः स्फुटं यतस्ते शिशवः परासवः / / 140 / / ___ ममैवेति / हे चित्राङ्गि ! लोहितचञ्चुचरणस्वाद्विचित्रगात्रे! मम शोकेनैव मद्वि. पसिदुःखेनैव विदीर्णवासा विदलितहदा स्वया विपद्यते म्रियते यदि तत्तर्हि देवेन हतः स्फुटं व्यकं पुनहतोऽस्मि हेति विषादे, 'हा विस्मयविषादयोरिति विश्वः / कुतः 1 यतः ते शिशवः परासवो मातुरष्यमावे पोषकाभावान्मृताः, अतः शिशुमरण. भावनया द्विगुणितं मे मरणदुःखं प्राप्तमित्यर्थः // 140 // हे विचित्र ( सुन्दर ) भगोवाली प्रिये ! मेरे ही शोक से विदीर्णहृदया तुम यदि मर जावोगी तो हा ! दैवसे मारा गया मी मैं फिर मारा गया, क्योंकि तुम्हारे बच्चे ( तुम्हारे विना ) अवश्य ही मर जायेंगे। [ मेरे विना तुम मी उन बच्चों का पालन-पोषण कर सकती हो, किन्तु यदि मेरे वियोगसे तुम मर जावोगी तो उनकी निश्चित हो मृत्यु हो बायेगी, इस प्रकार मेरे मरनेपर मेरा परिवार ही नष्ट होता हुआ प्रतीत होता है, अतएव मुझे दुर्दैवने यह बड़ा दुःसह कष्ट दिया ] // 140 // तवापि हाहा विरहात् क्षुधाकुलाः कुलायकूलेषु विलुट्य तेषु ते / चिरेण लब्धा बहुभिर्मनोरथैर्गताः क्षणेनास्फुटितेक्षणामम // 141 / / ननु मन्मृतौ कथं तेषां मृतिरत आह-तवापीति / हे प्रिये ! बहुभिर्मनोरथैश्वि रेण लब्धाः कृच्छ्रलब्धा इत्यर्थः, अस्फुटितेषणाः अद्याप्यनुन्मीलितेक्षणा मम ते पूर्वोक्ताः शिशवः तवापि न केवलं ममेवेति भावः / विरहाद्विपत्तेः सुधाकुलाः सुरपी. डिताः तेषु स्वसम्पादितेवित्यर्थः, कुलायफूलेषु नीडान्तिकेषु, 'कुलायो नीडम' स्त्रियामि'त्यमरः / विलुट्य परिवृत्य क्षणेन गताः मृतप्रायाः, हा हेति खेदे // 14 // (हे प्रिये ! ) मेरे बहुत मनोरथोंसे प्राप्त, अस्फुटित नेत्रोंवाले वे (बच्चे ) तुम्हारे भी ( तथा मेरे मी) विरइसे भूखोंसे व्याकुल हो उन घोसलों के समूहों में लोटकर क्षणमात्रमें चक वसेंगे अर्थात् मर जायेंगे; हाय ? हाय !! // 141 // सुताः कमाहूय चिराय चूकृतैविधाय कम्प्राणि मुखानि के प्रति ? | कथासु शिष्यध्यमिति प्रमील्य च सूतस्य सेकाद् बुबुधे नृपाश्रुणः // 142 / / सुता इति। हे सुताः ! चूकृतैश्चूङ्कारश्चिराय के प्रति कमपि प्रति मुखानि
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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