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________________ 222 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् प्राची आदि आशाएँ ( दिशाएँ ) तो सुन्दर शरीरको धारण कर पहलेके समान हृदयमें शोभित नहीं हो रही हैं / 60 // टिप्पणी-त्वदाशा = त्वयि आशा ( स० त० ) "आशा दिगतितृष्णयोः" इति वैजयन्ती / आत्मदाराः = आत्मनो दारा: (10 त०), पूर्वाऽऽदयः = पर्वा आदिर्यासां ताः ( बहु० ) / अपूर्व नायिकामें अनुराग करनेवालेके चित्तमें पहलेकी नायिकाएं सौन्दर्ययुक्त होनेपर भी पसन्द नहीं होती हैं / एकमात्र आपमें अतिशय तृष्णावाले इन्द्र आदि दिक्पाल अपनी-अपनी पूर्व आदि दिशाओंके पालनके अधिकारको भूलकर रहते हैं यह भाव है। इस पद्यमें परिसंख्या अलङ्कार है / उसका श्लेष रूपसे प्रयुक्त दो आशाओं (दिशा, अतितृष्णा ) के अभेद अध्यवसायसे अतिशयोक्ति अलङ्कारके साथ अङ्गाङ्गिभावसे सङ्कर है // 6 // अनेन साधं तव यौवनेन कोटि.परामच्छिदुरोऽध्यरोहत् / प्रेमाऽपि तन्वि ! त्वयि वासवस्य गुणोऽपि चापे सुमनःशरस्य // 61 / / अन्वयः-हे तन्वि ! वासवस्य त्वयि प्रेमा अपि तव अनेन यौवनेन सार्धम् अच्छिदुरः ( सन् ) परां कोटिम् अध्यरोहत् / ( तथा ) सुमनःशरस्य चापे गुणः अपि परां कोटिम् अध्यरोहत् // 61 // . व्याख्या-हे तन्वि - हे सुन्दरि !, वासवस्य = इन्द्रस्य, त्वयि - भवत्यां, प्रेमा अपि = अनुरागः अपि, तव = भवत्याः, अनेन = पुरो विद्यमानेन, यौवनेन = तारुण्येन, सार्धं = सह, अच्छिदुरः = अविच्छिन्नः सन्, परां-परमां, कोटिम = उत्कर्षम, अध्यरोहत् = अधिरूढः / तया सुमनःशरस्य = पुष्पेषोः, कामस्य / चापे - धनुषि, गुणः अपि = मौर्वी अपि, पराम-उत्तरां, कोटिम्= अटनिम्, अध्यरोहत अधिरूढः // 61 // ___ अनुवादः-हे सुन्दरि ! आपमें इन्द्रका अनुराग भी आपके इस यौवनके साथ अविच्छिन्न होता हुआ अत्यन्त उत्कर्षको आरूढ है / वैसे ही कामदेवकी प्रत्यञ्चा भी धनु में दूसरी कोटि ( अटनि ) में आरूढ है / / 61 // टिप्पणी यौवनेन = "सार्धम्" इस पदके योगमें तृतीया / अच्छिदुरः = न छिदुर: ( नन्० ) / अध्यरोहत् अधि + रुह + लङ् + तिप् / सुमनःशरस्य = सुमनसः शरा यस्य सः, तस्य ( बहु० ) / कोटिम् = "अत्युत्कर्षाऽश्रय: कोटयः" इत्यमरः / इस पद्यमें प्रेम और गुण दोनोंका ही प्रस्तुत पदार्थोंकी अधिरोहणरूप क्रियाके साथ सम्बन्ध होनेसे तुल्ययोगिता है, उन दोनों पदार्थोंका "पराकोटिम" ऐसी श्लेषभित्तिक अभेदाऽध्यवसायसे अतिशयोक्तिमूल "यौवनेन
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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