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________________ सप्तमः सर्ग: 129 कमलकी शोभा नहीं होती है परन्तु दमयन्तीका यह मुख तो कव ( दिनमें वा रातमें ) चन्द्र वा कमलमें एककी शोभासे सुन्दर नहीं होता है ? // 55 // टिप्पणी-चन्द्राऽम्बुजे = चन्द्रश्च अम्बुजं च ( द्वन्द्व० ). दिवारजन्योः = दिवा च रजनी च दिवारजन्यौ, तयोः ( द्वन्द्व० ) / रविसोमभीते = रविश्च सोमश्च ( द्वन्द्व ), ताभ्यां भीते ( प० त० ) / स्वलक्ष्मी = स्वस्य लक्ष्मीः, ताम् (ष० त०)। निक्षिपतः = नि + क्षिप् + लट् + तस् / एकश्रिया = एकस्य ( एकतरस्य ) श्रीः, तया ( ष० त० ) / इस पद्यमें यथासंख्य और दमयन्तीके मुख में चन्द्र और कमलकी लक्ष्मी रहनेकी उत्प्रेक्षासे दमयन्तीके मुखकी लक्ष्मीके उत्कर्षकी प्रतीति होनेसे व्यतिरेक अलङ्कार व्यङ्गय है। इस प्रकार अलङ्कारोंसे अलङ्कारकी ध्वनि है // 55 // ___ अस्या मुखश्रीप्रतिबिम्बमेव जलाच्च तातान्मकुराच्च मित्रात् / अभ्यर्थ्य पत्तः खलु पद्मचन्द्रो विभूषणं याचितकं कदाचित // 56 / / अन्वयः--पद्मचन्द्रौ तातात् जलात् मित्रात् मुकुराच्च अस्या मुखश्रीप्रतिविम्बम् एव याचितकं विभूषणं कदाचित् अभ्यर्थ्य धत्तः खलु // 56 / / / / ____व्याख्या-पद्मचन्द्रौ = कमलसोमो, तातात् = जनकात्, मित्रात् = सुहृदः, आकारसाम्यादिति शेषः / अस्याः = दमयन्त्याः , मुखश्रीप्रतिबिम्बम् एव = वदनशोभाप्रतिच्छायाम् एव, याचितकं = याच्याप्राप्तं, विभूषणम् - अलकारं, कदाचित् = जातुचित्, अभ्यर्थ्य = याचित्वा, धत्तः = दधाते, खलु = निश्चयेन // 56 // अनुवाद:-कमल अपने जनक जलसे और चन्द्र सादृश्यसे अपने मित्र दर्पणसे दमयन्तीके मुखकी शोभाके प्रतिबिम्ब ( परछाँही ) ही मांगनेसे पाये गये अलङ्कारको किसी समय प्रार्थना करके मानो धारण करते हैं // 56 // टिप्पगो-पद्मचन्द्रौ = पद्म च चन्द्रश्च ( द्वन्द्व० / मुखश्रीप्रतिबिम्ब = मुखस्य श्रीः (10 त० ), तस्या: प्रतिबिम्बम्, तत्, (10 त० ) / याचितकं = याचितेन निर्वृत्तं, तत्, "अपमित्ययाचिताभ्यां कक्कनौ" इस सूत्रसे कन् प्रत्यय / अभ्यर्थ्य =अभि + अर्थ + क्त्वा ( ल्यप् ) / धत्तः-धा + लट् + तस् / इस पद्यमें कमल, जलमें पड़े हुए दमयन्तीके प्रतिबिम्बको अपने जनक जलसे और चन्द्र, आकारकी समता से अपने मित्र दर्पणसे दमयन्तीके प्रतिबिम्बको माँगकर भूषणके रूपमें धारण करते हैं कहनेसे कमलमें और चन्द्रमें जो शोभा है वह स्वाभाविक नहीं है ऐसा कहनेसे उत्प्रेक्षा अलङ्कार है / / 56 / / - 9 ने० स०
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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