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________________ पचमः सर्गः . 115 स्मः=भवामः। आः=अयमानन्दास्वादाऽनुकारः। “गलिताऽधिकालम अनन्तसमयपर्यन्तं, * यां-स्वर्ग, साधु-सम्यक, प्रशाधि प्रशासनं कुरु / साधुसम्यक्, विजयस्व=सर्वोत्कृष्टो भव / अनुवाद-हे इन्द्र ! स्वभावसे मनोहर आपके ऐश्वर्योसे हम अत्यन्त चञ्चल हो गये हैं। ओः ! आप अनन्त समयतक स्वर्गका अच्छी तरहसे प्रशासत करें। आप अच्छी तरहसे सबमें उत्कृष्ट हों। टिप्पणी-विडोजः= विडतीति विहं, "विड भेदने" धातुसे क प्रत्यय / विडम् ओजो यस्य स विडोजा, तत्सम्बुद्धी (बहु०) / स्वभावमधुरैः स्वभावेन मधुराः, तः (तृ० त०)। ताव:तव. इमे, :, युष्मद् + अण्, "तवकममकावेकवचने" इस सूत्रसे तवक आदेश / अनुभावः=अनुगता भावाः, तैः ( गति० ) / अतितराम्-अति+तरप् + आमुः। गलिताऽवधिकालम् गलितः अवधिः यस्य सः (बहु०)। गलितावधिः कालो यस्मिन्कर्मणि तद्यथा तथा (बहु० ) / प्रशाधि=+ शास् + लोट् + सिप् / “शा हो" इस सूत्रसे शा आदेश / विजयस्व=वि+जि+लोट+थास् / “विपराभ्यां जेः" इस सूचसे / आत्मनेपद / इस पद्यमें आशी: अलङ्कार है // 24 // संख्यविक्षततनुनववलक्षालिताऽखिलनिजाउघलघूनाम् / यरिवहाऽनुपगमः शृणु राज्ञां तज्जगावमुदं तमुवन्तम् // 25 // अन्वयः-संख्यविक्षततनुस्रवदम्रक्षालिताऽखिलनिजाऽघलघूनां राज्ञां यतू इह अनुपगमः तत् जगयुवमुदं तम् उदन्तं शृण / व्याख्या-नारद इन्द्रप्रश्नस्योत्तरमाह-संख्येति / संस्यविक्षत०=युद्धनिहतशरीरनिःसरधिरप्रक्षालितसमस्तस्वपापभाररहितानां, राज्ञां नृपाणां, यत् यस्मात्कारणात्, इह=अत्र, स्वर्ग, अनुपगमा अनागमनं, तत्कारणभूतं, जगावमुदंलोकतरुणानन्दकारणं, तं- प्रसिद्धम्, उदन्तं = वृत्तान्तं, शृणु-आकर्णय / अनुवाद-युद्धमें निहत शरीरसे बहते हुए रुधिर(लोहू )से अपने समस्त पापका क्षालन होनेसे हल्के होनेवाले राजाओंका जो यहां आगमन नहीं होता है उसके कारणभूत, लोकके तरुण राजाओंका आनन्दकारण उस वृत्तान्तको सुनिए। टिप्पणी-संख्यविक्षत० =संख्ये विक्षताः ( स० त०), तान तास्तनवः (क० धा०), सवन्ति च तानि अस्राणि ( रुधिराणि) (क० धा०),
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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