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________________ 88 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् कृशाऽङ्गताम्, आप्यमानोऽपि नीयमानोऽपि, तेन स्मरेण, साधं समं, स्पर्धा सङ्कर्ष, शाम्यमिति भावः / न विजहाति-न परित्यजति / अङ्गस्य कार्येऽपि स्पर्धाबीजलावण्यस्य कार्याऽभावादङ्गकर्शनं वृथवेति भावः // 109 // अनुवाद-(हे राजकुमारी ! ) नलको कामदेवने बाणोंसे भेदन कर सौन्दर्यमात्र शेष रखकर कृश बना डाला। (परन्तु ) वे ( नल ) अनङ्ग ( कृश ) होकर भी उन-( कामदेव ) के साथ ( लावण्यमें ) सङ्घर्षको नहीं छोड़ रहे हैं / / 109 / / टिप्पणी-इस पद्यमें नलकी तनुता ( कृश अवस्था ) का वर्णन है। निस्तक्ष्य =निस्-उपसर्गपूर्वक "तक्ष त्वचने" धातुसे क्त्वाके स्थान में ल्यप् / लावण्यशेषां = लावण्यम् एव शेषो यस्याः सा, ताम् (बहु० ) / कान्तिविशेषको "लावण्य" कहते हैं, उसका लक्षण है "मुक्ताफलेषु छायायास्तरलत्वमिवान्तरा / प्रतिभाति यदगेषु तल्लावण्यमिहोच्यते // " अर्थात् जैसे मोतीमें तरलता दिखाई पड़ती है, वैसे ही अङ्गोंमें जो तरलता प्रतीत होती है, उसे 'लावण्य" कहते हैं। कृशतां - कुश+तल् + टाप् + अम् / अनायि-नी+लुङ ( कर्ममें )+त / अनङ्गताम् =अविद्यमानम् अङगं यस्य सः (नबहु०), तस्य भावः तत्ता, ताम् / अनङ्ग+तल् + टाप + अम् / यहाँपर नञ् अल्पाऽर्थक है / आप्यमानः= आप् + लट् ( कर्ममें ) ( शानच् ) यक+सु। तेन =''सार्धम्"के योगमें तृतीया / विजहाति=वि+ हा+ लट् + तिप् / कामदेवने नलके सौन्दर्यसे क्रुद्ध होकर उन्हें बाणोंसे भेदन कर अत्यन्त कृश बना डाला, तो भी सौन्दर्यमात्र शेष होकर भी नल कामदेवके साथ स्पर्धा नहीं छोड़ रहे हैं, यह इस पद्यका भावार्थ है / इस पद्यमें विशेषोक्ति अलङ्कार है // 109 // त्वत्प्रापकात त्रस्यति ननसोऽपि, त्वय्येव दास्येऽपि न लज्जते यत् / स्मरेण बाणरतितक्ष्य तीक्ष्णर्लनः स्वभावोऽपि कियान् किमस्य ? // 110 // अन्वयः-(हे भैमि !) स्मरेण तीक्ष्णः बाणः अतितक्ष्य अस्य स्वभावोऽपि कियान् अपि लूनः किम् ? यत् त्वत्प्रापकात् एनसः अपि न त्रस्यति, त्वयि दास्ये अपि न लज्जते एव / / 110 // व्याख्या-अथ द्वाभ्यां पद्याभ्यां लज्जात्यागमाह-(हे भैमि ! ) स्मरेण= कामदेवेन, तीक्ष्णः=निशितैः, बाणः शरैः, अतितक्ष्य =भृशं तनूकृत्य, शरीर
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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