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________________ तुलनात्मक धम्मविचार. 125 मत्यंत उपेक्षा की जाती है ऐसे आत्मा की परम शांति को बौद्ध धर्म में नीति का परमपद माना है इस लिए बौद्ध धर्म में समवेदना और भ्रातृभाव यह अत्यंत उपेक्षा की समान कोटि में आकर शिथिल हो जाते हैं। अपने प्यारे बालक की मृत्यु से विलाप करती माता को गौतमने सिर्फ इतना कहकर शान्ति दी थी कि ऐ माता तू घरघर फिर कर देखो कोई भी. घर सगे संबंधियों के मरने से शोक विना नहीं / मरे हुओं की संख्या बहुत है और जीवितों की संख्या थोड़ी है " कर्म का स्त्रियों का और जीवन की सर्व प्रवृत्तिओं का तिरस्कार करने का बौद्ध धर्म के साधुओं का रुख होता है / बौद्ध धर्म का उद्देश मनुष्य को जीवन में प्रवृत्त करने का नहीं परन्तु जीवन प्रवृत्ति में से मुक्त करने का है / प्रत्येक मनुष्य का यह प्रथम कर्त्तव्य है कि उसे अपने मोक्षसिद्ध करने के लिए संमार में से निवृत हो / मनुष्यों का अपना स्वार्थ सिद्ध हो इस लिए दुनिया में धार्मिक संस्था होती है और परलोक में ऐसी संस्था बिलकुल नहीं हो सकती। अष्टम प्रकरण एकेश्वर वाद FESTHA धारण रीति से हम कह सकेंगे कि आधुनिक उन्नत प्रजाएं एकेश्वरवाद के मानने वाली हैं, अनेक देव A NY वाद तो बहुत करके उन्नत प्रजाओं में नहीं देखा
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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