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________________ नयविजय जी अपने शिष्यों सहित काशी पहुंचे और वहां एक प्रसिद्ध भट्टाचार्य के पास अध्ययन के लिए यशोविजय जी को भेजा। कहते हैं कि यशोविजय जी बटुक का वेश धर कर इन विद्या गुरु के पास गये। यह बात यथार्थ के कितनी निकट है यह कहना कठिन है किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि यशोविजय जी ने गुरु के पास पूर्ण विनय से शिक्षा ग्रहण की। अपने तीन वर्ष के काशी प्रवास में उन्होंने षड्दर्शन, प्राचीन न्याय, नव्य न्याय आदि गंभीर व कठिन विषयों का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया और साथ ही अपने गुरुजनों का स्नेह व आशीर्वाद भी। गुरु के आशीर्वाद से उन्होंने काशी की विद्वत सभा में शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त कर न्यायविशारद का पद प्राप्त किया। ऐसी मान्यता है कि काशी में ही उन्हें न्यायाचार्य की पदवी से भी सम्मानित किया गया था। काशी से यशोविजय जी आगरा आए और वहां चार वर्ष तक रहे। इस काल में उन्होंने काशी में प्राप्त किये ज्ञान को विकसित और परिपक्व करने के उद्देश्य से वहां के एक प्रकाण्ड न्यायशास्त्री के पास न्याय का विशेष अध्ययन व मनन किया। आगरा से जब वे अहमदाबाद पहुंचे तब तक उनके पांडित्य की कीर्तिगाथा वहां पहुंच चुकी थी। यशोविजय जी के वहां पहुंचते ही औरंगजेब के अधीन सूबेदार महोबत खां ने बडे बहुमान से इस परम विद्वान जैन श्रमण को अपने दरबार में बुलाया। वहां यशोविजय जी ने अठारह अवधानों का प्रदर्शन किया। उनकी विद्वत्ता तथा शास्त्रज्ञान से चमत्कृत हो अहमदाबाद के श्रीसंघ ने उन्हें उपाध्याय पद से सम्मानित करने का निर्णय लिया। तत्कालीन पट्टधर आचार्य श्री विजयदेवसूरि के शिष्य श्री विजयप्रभसूरि ने सं. 1718 में उन्हें उपाध्याय पद से अलंकृत किया। उपाध्याय पद प्राप्त करने से पूर्व पारम्परिक रूप से उन्होंने बीस स्थानक की ओलीजी का तप ग्रहण किया। इस अवसर पर पं. जयसोम आदि श्रमणों ने बहुमान से उनकी सेवा की। ... - यशोविजय जी ने अपना समस्त जीवन विविध शास्त्रों के अध्ययन चिन्तन और सृजन में ही झोंक दिया। सृजन के इस भागीरथ श्रम में वे
SR No.032769
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar, Rita Kuhad, Surendra Bothra
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1995
Total Pages286
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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