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________________ 42] काव्यशिक्षा वस्ते—वसू आच्छादने अ० / निवासयति—वस स्नेह-छेदापहरणेषु चु० / वासयति स एव / उपवासयति-[स एव धातुः।] निर्वासयति–स एव धातुः / निवसति—वस आच्छादने भू० // 19 // ___ इच्छति—इषु इच्छायां तु० / अन्वेषते-एष्ट हेष्ट गतौ भू० / प्रेषते5 ईष गतिहिंसा० भू० / इष्णाति–इष आभीक्ष्ण्ये क्रया० / अन्विष्यति—इष गतौ दि० // 20 // शिनोति—शिञ् निशामने स्वा० / निशीशांसते-शानच् तेजने भू० / निश्यति-शो तनूक० दि० / निशणति-वन षण सं. भू० / निशानयति शान तेजने चु० // 21 // 10 प्रमिणोति - द्रु मिञ् प्रक्षेपणे स्वा० / मीनाति - मीञ् दूञ् हिं० क्रया० / प्रमीयते - मीङ् हिंसायां दि० / मयते - मेङ् प्रतिदाने भू० // 22 // आज्ञापयति-ज्ञा अवबोधने भू० (चु०)। संज्ञपयति-स एव / उपज्ञपयतिस एव / ज्ञपयति-स०॥ 23 // ___उद्घट्टते-घट्ट चलने भू० / संघट्टयति--स० चु० / विघाटयति-घट 15 संघाते चु० / घटते-घट चेष्टायां भू० // 24 // ___तुडति—तुड तोडने तु० / तोडति—तुड तोडने भू० / तोडयति—तुड तोडने चु० // 25 // ___ कुरति-कुर शब्दे तु० / गुञ्जति—गुज शब्दे तु० / कुनाति—कुङ् शब्दे क्रया० / क्नूयते—क्नूयी शब्दे भू० // 26 // 20 भावयते-भू प्राप्तावात्मनेपदी चु० / भवते—स एव / भावयति-- भू कृप अव कल्पने चु० / आविर्भवति-भू [स]त्ता० भू० // 27 // ____ शुन्धति—शुन्ध शुद्धौ भू० / शुन्धयति—-शुन्ध शुद्धौ चु० / शुन्धतेविकल्पेनन्तः / शुध्यति—शुध शौ० दि० // 28 // तापयति-तप दाहे चु० / तपति-तप धूप सं० भू० / वितपति(ते)-- 25 [उ]द्-विद्भ्यां तपः' आ० / तप्यते—तपसीपः कर्म० [ दि० ] // 29 // अतिरेचयति-रिच वियोजनसंपर्चनयोः / विकल्पेन / छिनत्ति-छिदि सद्धि 0 रु० / छेदयति—छेद द्वैधी० चु० // 30 // - उड्डीयते-डीङ् गतौ दि० / उड्डयते-डीङ् विहाय० भू० // 31 //
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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