SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 38 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा 4. सूक्ष्म-स्थूल-जो विषय दिखाई नहीं देते हैं किन्तु हमारी ऐन्द्रिक अनुभूति के विषय बनते हैं, जैसे-सुगन्ध, शब्द आदि / आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से विद्युत धारा का प्रवाह और अदृश्य, किन्तु अनुभूत गैस भी इस वर्ग के अन्तर्गत आती है। जैन आचार्यों ने ध्वनि-तरंग आदि को भी इसी वर्ग के अन्तर्गत माना है। वर्तमान युग में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा जो चित्र आदि का सम्प्रेषण किया जाता है, उसे भी हम इसी वर्ग के अन्तर्गत रख सकते हैं। 5. सूक्ष्म-जो स्कन्ध या पुद्गल इन्द्रिय के माध्यम से ग्रहण नहीं किये जा सकते हों किन्तु जिनके परिणाम या कार्य अनुभूति के विषय होते हैं, तो वे इस वर्ग केअन्तर्गत आते हैं। जैनाचार्यों ने कर्मवर्गणा, जो-जो जीवों के बन्धन का कारण है, को इसी वर्ग में माना है। इसी प्रकार मनोवर्गणा आदि भी इसी वर्ग के हैं। 6. अति सूक्ष्म-द्वयणुक आदि से उत्पन्न छोटे-स्कन्ध या परमाणु अति सूक्ष्म माने गये हैं। स्कन्ध के निर्माण की प्रक्रिया : स्कन्ध की रचना दो प्रकार से होती है-एक ओर बड़े-बड़े स्कन्धों के टूटने से या छोटेछोटे स्कन्धों के संयोग से नवीन स्कन्ध बनते हैं, तो दूसरी ओर परमाणुओं में निहित स्वाभाविक स्निग्धता और रुक्षता के कारण परस्पर बन्ध होता है, जिससे स्कन्धों की रचना होती है। इसलिए यह कहा गया है कि संघात और भेद से स्कन्ध की रचना होती है। संघात का तात्पर्य एकत्रित होना और भेद का तात्पर्य टूटना है। किस प्रकार से परमाणुओं के परस्पर मिलने से स्कन्ध आदि की रचना होती है, इस प्रश्न पर जैनाचार्यों ने विस्तृत चर्चा की है किन्तु विस्तारभय से उसे यहाँ वर्णित करना सम्भव नहीं है। इस हेतु इच्छुक पाठक तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय की टीकाओं का अवलोकन करें। इस सम्बन्ध मे श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में मतभेद भी है। जैनाचार्यों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने अंधकार, प्रकाश, छाया, शब्द, गर्मी आदि को पुद्गल द्रव्य का ही पर्याय माना है। इस दृष्टि से जैनदर्शन का पुद्गल विचार आधुनिक विज्ञान के बहुत अधिक निकट है। जैनधर्म की ही ऐसी अनेक मान्यतायें हैं, जो कुछ वर्षों तक अवैज्ञानिक व पूर्णतः काल्पनिक लगती थीं, किन्तु आज विज्ञान से प्रमाणित हो रही हैं। उदाहरण के रूप में प्रकाश, अंधकार, ताप, छाया और शब्द आदि पौद्गलिक हैं। पूर्व में जैन आगमों की इस मान्यता पर कोई विश्वास नहीं करता था, किन्तु आज उनकी पौद्गलिकता सिद्ध हो चुकी है। जैन आगमों का यह कथन है कि शब्द न केवल पौद्गलिक है, अपितु वह ध्वनि रूप में उच्चरित होकर लोकान्त तक की यात्रा करता है। इस तथ्य को कल तक कोई भी स्वीकार नहीं करता था, किन्तु आधुनिक वैज्ञानिक खोजों ने
SR No.032751
Book TitleJain Darshan Me Dravya Gun Paryaya ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy