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________________ जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा 1. द्रव्यात्मा - आत्मा का तात्त्विक स्वरूप / . 2. कषायात्मा - क्रोध, मान, माया आदि कषायों या मनोवेगों से युक्त चेतना की अवस्था। 3. योगात्मा - शरीर से युक्त होने पर चेतना की कायिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं की अवस्था। 4. उपयोगात्मा - आत्मा की ज्ञानात्मक और अनुभूत्यात्मक शक्तियाँ / वह आत्मा का चेतनात्मक व्यापार है। 5. ज्ञानात्मा - चेतना की विवेक और तर्क की शक्ति। 6. दर्शनात्मा - चेतना की अनुभवात्मक अवस्था / 7. चरित्रात्मा - चेतना की क्रियात्मक शक्ति / 8. वीर्यात्मा - चेतना की पुरुषार्थ-शक्ति / उपर्युक्त आठ प्रकारों में द्रव्यात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा और दर्शनात्मा ये चार तात्त्विक आत्मा के स्वरूप के ही द्योतक है, शेष चार कषायात्मा, योगात्मा, चरित्रात्मा और वीर्यात्मा ये चारों आत्मा के अनुभवाधारित स्वरूप के निर्देशक हैं। तात्त्विक आत्मा द्रव्य की अपेक्षा से नित्य होती है यद्यपि उसमें ज्ञानादि की पर्यायें रहती हैं। अनुभवाधारित आत्मा चेतना की शरीर से युक्त अवस्था है। यह परिवर्तनशील एवं विकारयुक्त होती है। आत्मा के बन्धन का प्रश्न भी इसी अनुभवाधारित आत्मा से सम्बन्धित है। विभिन्न दर्शनों में आत्म-सिद्धान्त केसन्दर्भ में, जो पारस्परिक विरोध दिखाई देता है, वह आत्मा के इन दो पक्षों में किसी पक्ष-विशेष पर बल देने केकारण होता है। भारतीय परम्परा में बौद्धदर्शन ने आत्मा के अनुभवाधारित परिवर्तनशील पक्ष पर अधिक बल दिया, जब कि सांख्य और शंकर वेदान्त ने आत्मा के तात्त्विक स्वरूप पर ही अपनी दृष्टि केन्द्रित की जैनदर्शन दोनों ही पक्षों को स्वीकार कर उनके बीच समन्वय का कार्य करता है। विवेक क्षमता की दृष्टि से आत्माएँ दो प्रकार की मानी गई हैं- 1. समनस्क, 2. अमनस्का समनस्क आत्माएँ वे हैं, जिन्हें विवेक-क्षमता से युक्त मन उपलब्ध है और अमनस्क आत्माएँ वे हैं, जिन्हें ऐसा विवेक-क्षमता से युक्त मन उपलब्ध नहीं है। जहाँ तक नैतिक जीवन के क्षेत्र का प्रश्न है, समनस्क आत्माएँ ही नैतिक साध्य की उपलब्धि कर सकती हैं, क्योंकि विवेक-क्षमता से युक्त मन की उपलब्धि होने पर ही आत्मा में शुभाशुभ का विवेक करने की क्षमता होती है, साथ ही इसी विवेक-बुद्धि के आधार पर वे वासनाओं का संयमन भी कर सकती हैं। जिन आत्माओं में ऐसी विवेक-क्षमता का अभाव है, उनमें संयम की क्षमता का भी अभाव होता है, इसलिए वे नैतिक प्रगति भी नहीं कर सकतीं / नैतिक जीवन के लिए आत्मा में विवेक और संयम दोनों का होना
SR No.032751
Book TitleJain Darshan Me Dravya Gun Paryaya ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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