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________________ ( 77 ) नृशंसोऽहमनार्योऽहं विना तां मृगलोचनाम् / मत्कृते निधनं प्राप्तां यज्जीवाम्यतिनिघृणः // 10 // मृतेति सा तनिमित्तं त्यजामि यदि जीवितम् / किं मयोपकृतं तस्याः श्लाध्यमेतत्तु योषिताम् // 12 // यदि रोदिमि वा दीनो हा प्रियेति वदन्मुहुः / तथाऽप्यश्लाध्यमेतन्नो वयं हि पुरुषाः किल // 13 // अथ शोकजडो दीनः स्रजा हीनो मलान्वितः / विपक्षस्य भविष्यामि ततः परिभवास्पदम् // 14 // किन्त्वत्र मन्ये कर्तव्यस्त्यागो भोगस्य योषितः / स चापि नोपकाराय तन्वङ्गथाः किंतु सर्वथा // 16 // मयाऽऽनृशंस्यं कर्तव्यं नोपकार्यपकारि च | या मदर्थेऽत्यजत्प्राणाँस्तदर्थेऽल्पमिदं मम // 17 // यदि सा मम तन्वङ्गी न स्याद् भार्या मदालसा / अस्मिन् जन्मनि नान्या मे भवित्री सहचारिणी // 16 // तामृते मृगशावाक्षी गन्धर्वतनयामहम् / न भोक्ष्ये योषितं काश्चिदिति सत्यं मयोदितम् // 20 // राजकुमार कहते हैं जो मृगनयनी मुझे मरा सुन कर सद्यः मर गई उसके बिना यदि मैं जीवित रहता हूँ तो मैं नृशंस, अनार्य और अत्यन्त क्रूर कहा जाऊँगा // 10 // वह मर गई, इस कारण यदि मैं भी अपने जीवन का अन्त कर दूं तो इससे उसका क्या भला होगा? / मृत का अनुगमन करना तो स्त्रियों ही के लिये श्लाध्य होता है / / 12 यदि "हा प्रिये, हा प्रिये" कह कर दीन बनकर रोऊँ तो यह भी मेरे लिये श्लाध्य नहीं है, कारण मैं पुरुष हूँ और यह पुरुष के लिये योग्य नहीं है // 13 // यदि शोक से निश्चेष्ट हो दीन, वेशभूषाविहीन तथा मलिन होकर रहूँ तो शत्रुत्रों से अपमान होगा / / 14 / / इस स्थिति में मुझे यही उचित जान पड़ता है कि मैं आजीवन स्त्रीसम्भोग का परित्याग कर दूं। यद्यपि इससे भी उसका कोई उपकार न होगा,किन्तु उपकार अथवा अपकार हो वा न हो,पर मुझे इतनी मनुष्यता का पालन तो करना ही चाहिये / जिसने मेरे लिये अपने प्राणों तक का परित्याग कर दिया उसके लिये मेरा यह त्याग अत्यन्त अल्प है // 16-17 //
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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