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________________ ( 76 ) पुत्र को जन्म देने में जो माता को कष्ट होता है वह उस समय सफल हो जाता है जब उसका पुत्र युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है अथवा लड़ता हुआ शस्त्रों से पाहत होकर मर जाता है / / 45 / / तेईसवाँ अध्याय राजकुमार मायावी मुनि तालकेतु से विदा ले जब राजधानी में पहुँचे तब पौरजन उन्हें देखकर विस्मित एवं हर्षोत्फुल्ल हो उठे। राजभवन में प्रवेश कर राजकुमार ने माता-पिता को प्रणाम किया और उनके आशीर्वाद प्राप्त किये / मदालसा के बारे में जिज्ञासा करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि जब उनके पिता को दी गई उनकी झूठी मृत्यु की सूचना अन्तःपुर में पहुँची तब मदालसा बहुत दुखी हुई और पति के विना एक क्षण भी जीवित रहने को व्यर्थ समझ कर सद्यः मर गई। इस दु:समाचार से राजकुमार को बड़ा दुःख हुश्रा और उन्होंने प्रतिज्ञा करली कि वे श्राजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और किसी अन्य स्त्री से सम्पर्क न करेंगे। अपने मित्र ऋतध्वज के जीवन की यह दुःखमय घटना सुनाकर नागराज के पुत्रों ने अपने पिता से कहा-"पिता जी ! हमारे मित्र के जीवन में यही एक श्रभाव है जिसका निराकरण हमारी समझ से असम्भव है। नागराज अश्वतर इस घटना को सुनकर दुखी हुये और अपने पुत्रों के मित्र का यह दुःख दूर करने के उद्देश्य से जगजननी सरस्वती की श्राराधना में तत्पर हो गये। सरस्वती ने प्रसन्न होकर उनकी प्रार्थना के अनुसार उन्हें और उनके भ्राता कम्बल को समस्त स्वरों की सिद्धि का वरदान दिया। उसके बाद उन दोनों बन्धुवों ने स्वरसिद्ध संगीत से चिरकाल तक भगवान् शंकर की स्तुति की / शंकर जी प्रसन्न हुये और उनकी कृपा से मदालसा अपने पूर्व रूप में नागराज की कन्या होकर प्रकट हुई। नागराज ने अन्तःपुर में उसे गुप्त रूप से रख दिया। कुछ दिन बाद नागराज ने अपने पुत्रों से कहा कि मैं मुम्हारे मित्र को देखना चाहता हूँ। एक दिन उन्हें यहाँ ले श्रावो / पिता को श्राज्ञा मान उनके पुत्र एक दिन राजकुमार को अपने घर ले आये और पिता जी से उनकी भेंट कराये / पिता ने राजकुमार का बड़ा स्वागत किया और बड़े ठाट-बाट तथा प्रेम से उन्हें रखा। इस अध्याय के मदालसा की मृत्यु के शोक से पीड़ित ऋतध्वज के सम्बन्ध के अग्रिम श्लोक संग्राह्य हैं।
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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