SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 74 ) किन्नु शोचामि तनयं किन्नु शोचाम्यहं स्नुषाम् ? / विमृश्य कृतकृत्यत्वान्मन्येऽशोच्यावुभावपि // 26 // मच्छुश्रूषुर्यद्वचनाद् द्विजरक्षणतत्परः। प्राप्तो मे यः सुतो मृत्यु कथंशोच्यः स धीमताम् ? // 30 // अवश्यं याति यद्देहं तद् द्विजानां कृते यदि / मम पुत्रेण सन्त्यक्तं नन्वभ्युदयकारि तत् / / 31 // इयं च सत्कुलोत्पन्ना भर्तर्येवमनुव्रता / कथं नु शोच्या नारीणां भर्तुरन्यन्न दैवतम् // 32 // अस्माकं बान्धवानां च तथाऽन्येषां दयावताम् / शोच्या ह्यषा भवेदेवं यदि भ; वियोगिनी // 33 // या तु भर्तुर्वधं श्रुत्वा तत्क्षणादेव भामिनी / भतोरमनुयातेयं न शोच्याऽतो विपश्चिताम् // 34 // ताःशोच्या या वियोगिन्यो न शोच्या या मृताःसह / भतुर्वियोगस्त्वनया नानुभूतः कृतज्ञया // 35 // राजा राजकुमार के मरण-शोक से पीड़ित नगर के नर-नारियों का प्रबोधन करते हुये कहते हैं-प्रजाजनों और देवियों ! राजकुमार अथवा उसकी पत्नी के विषय में आप लोगों के अथवा मेरे अपने रोने का कोई कारण मेरी समझ में नहीं पाता। सब प्रकार के सम्बन्धों की अनित्यता पर विचार करने पर ऐसा लगता है कि क्या पुत्र के लिये रोऊँ ? और क्या पुत्रवधू के लिये रोऊँ 1 अर्थात् दोनों में किसी के लिये रोने का कोई कारण नहीं है। विचार करने से ऐसा जान पड़ता है कि दोनों ही कृतकृत्य होने के कारण शोक करने योग्य नहीं हैं // 28 // ___ जो सदा मेरी सेवा में लगा रहता था और मेरी ही प्राज्ञा से ब्राह्मणों की रक्षा में तत्पर होकर मृत्यु को प्राप्त हुया, वह मेरा पुत्र बुद्धिमान् मनुष्यों के लिये शोक का बिषय कैसे हो सकता है ? // 30 // ___ जो अवश्य जाने वाला है उस देह को मेरे पुत्र ने यदि ब्राह्मणों की रक्षा में व्यय कर दिया तो यह तो अभ्युदय का कारण है // 31 // ____ जो उत्तम कुल में उत्पन्न हुई और जिसने प्रेमवश परलोक में भी अपने पति का अनुगमन किया उस मेरी पुत्रवधू के लिये भी शोक करना कैसे उचित हो सकता है ? जब कि स्त्री के लिये पति से अतिरिक्त दूसरा कोई देवता नहीं है // 32 //
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy