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________________ जो मनुष्य अपने पिता से ख्यात होता है उसका जन्म निन्दनीय और जो अपने पुत्र से ख्यात होता है उसका जन्म प्रशंसनीय होता है | अपनी योग्यता से ख्यात होने वाला मनुष्य उत्तम, पिता, पितामह से ख्यात होने वाला मनुष्य मध्यम तथा माता अथवा मातृपक्ष से ख्यात होनेवाला मनुष्य अधम कहा जाता है / // 10 // पाईसवाँ अध्याय दिन पृथ्वीपर विचरण करे तथा यह चेष्टा करे कि मुनिजनों को दानवों से किसी प्रकार की कोई पीड़ा न पहुँचे। राजकुमार ने पिता की इस श्राज्ञा को अपना नित्य का कार्यक्रम बना लिया / एक दिन घमता फिरता वह यमुना के तट पर स्थित एक श्राश्रम में पहुँचा / वहाँ पातालकेतु का अनुज तालकेतु मुनि के वेष में रहता था। उसने भाई के वैर का स्मरण कर राजकुमार से कहा-"राजकुमार! मुझे एक यज्ञ करना है पर उसकी दक्षिणा मेरे पास नहीं है, अतः आप अपना कण्ठभूषण मुझे दे दें और जल के भीतर जा कर वरुणदेव की आराधना कर जब तक मैं न लौट तब तक आप यहीं रह मेरे श्राश्रम की रक्षा करें"। राजकुमार ने उसे सच्चा मुनि समझकर उसकी बात मान ली। तब तालकेतु ने जल में प्रवेश किया और उधर ही से राजधानी में जाकर राजा शत्रजित् से कहा- "राजन् ! मेरे श्राश्रम के निकट तपस्वियों की रक्षा के निमित्त राजकुमार को मार डाला और उनका घोड़ा लेकर चला गया। तपस्वियों ने अपनी रक्षा के हेतु मारे गये राजकुमार का दाह-संस्कार कर दिया। राजकुमार ने मरते समय अपना यह कण्टभूषण मुझे दिया था। अब आप इसे अपने आश्वासन के लिये अपने पास रखें"। राजकुमार की मृत्यु का समाचार सुनते ही सारी राजधानी शोकाकुल हो गयी / राजकुमार की पत्नी मदालसा ने तो अपने प्राण ही त्याग दिये। तब राजा ने सबको समयोचित श्राश्वासन दे पुत्रवधू का अग्निसंस्कार कराया। तालकेतु ने राजधानी से लौट कर जल में पुनः प्रवेश किया और जल से निकलकर राजकुमार से कहा-"श्राप की सहायता से मेरा अनुष्ठान पूर्ण हो गया, अब श्राप जा सकते हैं।" इस अध्याय के ये श्लोक संग्राह्य हैं न रोदितव्यं पश्यामि भवतामात्मनस्तथा / सर्वेषामेव सञ्चिन्त्य सम्बन्धानामनित्यताम् // 28 //
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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