SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः। यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः // (अ० 15 श्लो० 16, 17) समस्त भूत ही घर हैं, कूटस्थ पुरुष अक्षर है और लोकत्रय का धारक श्रेष्ठ पुरुष परमात्मा ईश्वर अव्यय है। अन्तरात्मा के पाँच भेद होते हैं-अव्यक्तात्मा, महानात्मा, विज्ञानास्मा, प्रज्ञानात्मा और प्राणात्मा। अव्यक्तात्मा वह है जिससे शरीर का जीवित रूप में रहना सम्भव होता है / महानात्मा वह है जिससे सत्व, रज और तम इस त्रिगुण की प्रवृत्ति होती है। विज्ञानात्मा वह है जो धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य तथा अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य और अनैश्वर्य का प्रवर्तक होता है / प्रज्ञानात्मा वह है जिससे ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय को प्रेरणा मिलती है, तथा प्राणात्मा वह है जिससे शरीर में सक्रियता उत्पन्न होती है। कठोपनिषद् में अव्यक्त, महान्, बुद्धि, मन तथा इन्द्रिय शब्दों से इनका निर्देश करके इनकी एक दूसरे से श्रेष्ठता बताते हुये इन सबों से पुरुषपरात्पर को श्रेष्ठ कहा गया है। जैसे इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः / मनसस्तु परा बुद्धिः बुद्धरास्मा महान् परः // महतः परमव्यक्तमव्यक्तात्पुरुषः परः। पुरुषाच परं किञ्चित्सा काष्ठा सा परा गतिः // भूतास्मा के नव भेद होते हैं जिन्हें इस प्रकार समझना चाहिये-भूतात्मा के प्रथमतः तीन भेद होते हैं-शरीरास्मा, हंसात्मा और दिव्यात्मा। शरीरात्मा .. मनुष्य आदि ससंज्ञ प्राणियों का शरीर ही शरीरास्मा कहा जाता है। हंसात्मा पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच विचरण करने वाला वायु हंसात्मा कहा जाता है, यह सदैव जागृत रहता है और सोते हुये शरीरात्मा की रक्षा करता है। इसका निर्देश श्रुति में इस प्रकार किया गया है। स्वमेन शारीरमभिप्रहृत्यासुप्तः सुप्तानभिचाकशीति / शुक्रमादाय पुनरेति स्थानं हिरण्मयः पौरुष एकहंसः // प्राणेन रक्षावरं कुलायं बहिः कुलायादमृतश्चरित्वा / स ईयते अमृतो यन्त्र कामं हिरण्मयः पौरुष एकहंसः //
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy