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________________ ( 65 ). उक्त प्रकार के भोगों में लगे रहने पर भी वे उनसे प्रभावित न हो सर्वथा निर्लेप बने रहे। अठारहवाँ अध्याय राजा कृतवीर्य के दिवंगत हो जाने पर उनके मन्त्री, पुरोहित तथा नागरिकों ने जब उनके पुत्र अर्जुन को राज्यासन पर अभिषिक्त करने का श्रायोजन किया तब अर्जुन ने यह कह कर राज्य लेना अस्वीकार कर दिया कि राजा के कर्तव्य का पालन बड़ा कठिन है। राजधर्म का समुचित निर्वाह एक अच्छा योगी ही कर सकता है। मैं योगशक्ति से शून्य होने के कारण राज्य स्वीकार करने में असमर्थ हूँ। यह सुनकर महामुनि गर्ग ने अर्जुन को सम्मति दी कि राज्य का सुन्दर शासन करने की क्षमता प्राप्त करने के निमित्त उन्हें महायोगी दत्तात्रेय की आराधना करनी चाहिये। उन्होंने यह भी बताया कि देवताओं ने वृहस्पति के आदेश से दत्तात्रेय की आराधना करके ही असुरों पर विजय प्राप्त की थी और देवराज ने असुरों से छीने हुये इन्द्रपद को पुनः प्राप्त किया था। इस अध्याय के निम्नलिखित श्लोक संग्राह्य हैं नाहं राज्यं करिष्यामि मन्त्रिणो ! नरकोत्तरम् / यदर्थ गृह्यते शुल्कं तदनिष्पादयन् वृथा // 2 // पण्यानां द्वादशं भागं भूपालाय वणिगजनः। दत्त्वाऽर्थरक्षिभिर्मार्गे रक्षितो याति दस्युतः // 3 // गोपाश्च घृततक्रादेः षड्भागं च कृषीबलाः। दत्त्वाऽन्यद् भूभुजे दयुर्यदि भागं ततोऽधिकम् // 4 // पण्यादीनामशेषाणां वणिजो गृह्णतस्ततः। इष्टापूर्त विनाशाय तद्राज्ञश्चौरधर्मिणः // 5 // यद्यन्यैः पाल्यते लोकस्तदृत्त्यन्तरसंश्रितः / गृह्णतो बलिषड्भागं नृपतेर्नरको ध्रुवम् // 6 // निरूपितमिदं . राज्ञः पूर्वैः रक्षणवेतनम् / अराश्चौरतश्चौयं तदेनो नृपतेर्भवेत् // 7 // तस्माद् यदि तपस्तप्त्वा प्राप्स्ये योगित्वमीप्सितम्। भुवः पालनसामर्थ्ययुक्त एको महीपतिः // 8 // पृथिव्यां शस्त्रधृङ् नान्यस्त्वहमेवर्द्धिसंयुतः।। ततो भविष्ये नात्मानं करिष्ये पापभागिनम् // 6 // अर्जुन का कथन है-मन्त्रियों! राज्य का फल नरक है अतः मैं उसे नहीं ग्रहण करूँगा / जिस उद्देश्य से प्रजा से कर लिया जाता है यदि उसको - 5 मा० पु.
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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