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________________ ( 36 ) अदिति की प्रार्थना पर सूर्य देव ने परम कमनीय तेजोमय रूप में अपना दर्शन दिया। दर्शन पा अदिति धन्य हो गई। उनकी कामना के अनुसार सूर्य देव ने उनके गर्भ से जन्म लिया / देवों का दैत्य, दानव आदिकों से युद्ध कराया और अपने उग्र तेज से सम्पूर्ण देवशत्रुओं को भस्म कर देवताओं को विजयी बनाया। अदितिपुत्र मार्तण्ड ने विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा देवी से विवाह कर वैवस्वत मनु, यमुना नदी और यमराज को जन्म दिया। उनके प्रचण्ड तेज को सहने में असमर्थ होने के नाते अपने स्थान में अपनी छाया को छोड़कर संज्ञा देवी उनके निकट से चली गई और पतिदेव के तेज को सौम्य एवं सह्य रूप में परिवर्तित देखने की कामना से तपस्या करने लगीं। जब सूर्य देव को यह बात ज्ञात हुई तो उन्होंने अपने श्वशुर विश्वकर्मा से अपना तेज कम करने के लिये कहा / विश्वकर्मा यन्त्र पर चढ़ा कर उनके तेज की छटनी करने लगे। छटनी करते समय उनका तेजोमय शरीर भभक उठा। धधकती ज्वालायें निकलने लगीं। सारा विश्व परितत और पर्याकुल हो उठा | तब इन्द्रसहित समस्त देवताओं ने, वशिष्ठ, अग्नि आदि महर्षियों ने एवं बालखिल्यों ने उनकी स्तुति की / विद्याधर, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, अप्सरा सभी ने उनका प्रसादन किया। उन सब स्तुतियों में उन्हें देवतात्रों का आदि देव, धूप, वर्षा, बर्फ का जनक, जगद्व्यापी, सम्पूर्ण जगत का पति, मुमुक्षु जनों का लक्ष्यभूत मोक्ष, ध्यानियों का ध्येय तत्त्व, कर्मकाण्डियों का आराध्य एवं प्राप्य तथा सम्पूर्ण चराचर जगत का धारक और पालक कहा गया है / ___ सूर्य देव के तेज को शान्त करते समय उनकी स्तुति करते हुये प्रजापति विश्वकर्मा ने कहा है कि भगवन् ! अाप प्रणत जनों पर अनुकम्पा करते हैं / आपकी आत्मा महान् है / आप समान वेग वाले सात अश्वों के रथ पर चलते हैं / आप का तेज शोभन है / आप से ही कमलों का विकास होता है / आप ही घोर अन्धकार का विनाश करते हैं / आप अत्यन्त पावन हैं / श्रापका कर्म पवित्र है / आप अनन्त कामनाओं के पूरक हैं / श्राप दीप्तिमान् अग्निमय किरणों से युक्त हैं / आप समस्त लोक का हित करने वाले हैं। आप अजन्मा, तीनों लोकों के कारण, भूतस्वरूप, गोपति, वृष, उच्च कोटि के महान् कारुणिक, चतु के जनक तथा अधिष्ठाता हैं / आपकी अन्तरात्मा ज्ञान से परिपूर्ण है / आप जगत् के आश्रय, जगत के हितैषी, स्वयम्भू, सारे लोक के द्रष्टा, अमित तेज को धारण करने वाले देवोत्तम हैं। आप उदयगिरि के शिखर से प्रकट हो समस्त देवताओं को साथ ले जगत का हित करते हैं / सहस्रों बड़ी बड़ी किरणें आपका शरीर हैं / आप अन्धकार को दूर कर असीम शोभा के भण्डार बन जाते हैं /
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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