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________________ बड़ी टेढ़ी है। यदि विषयोपभोग को रोक दिया जाय तो शरीर का अस्तित्व ही समाप्त हो जाय और तब फिर मानव के सारे मनोरथ ही भग्न हो जॉय, साधना के समस्त सोपान ही टूट जाँय, जीवन की समग्र योजनायें ही धूलिसात् हो जाय / और यदि इस विपत्ति से बचने के निमित्त विषयोपभोग को चलने दिया जाय तो उससे विषयाभिलाष की निरन्तर वृद्धि एवं पुष्टि होती रहेगी। फलतः वह किसी न किसी दिन बुद्धि-देवी को तुहिनाचल-शुभ्र अडिग आत्मज्योति से गिराकर बलात् शुम्भ-अहंकार की अनुगामिनी बना देगा / अतः इसे मारने के लिये देवी को युक्ति-रचना करनी पड़ती है। काली की सहायता लेनी पड़ती है / वे काली को निर्देश करती हैं कि उनके शस्त्रघात से इस राक्षस के शरीर से जो रक्त निकले उसे वे मुख में ले लें / भूमि पर न गिरने दें। जिससे नये रक्तबीज की उत्पत्ति न हो सके और वह राक्षस उनके शस्त्रों से आहत हो मृत्यु का ग्रास बन जाय / काली इस निर्देश का पालन करती हैं / देवी रक्तबीज पर शस्त्र प्रहार करती हैं / उसके जीवन का अन्त हो जाता है / ___ तात्पर्य यह है कि विषय का सर्वथा त्याग कर विषयाभिलाष को नहीं मिटाया जा सकता। शरीररक्षार्थ अावश्यक विषयों का उपभोग करना ही होगा / पर यह किसी ऐसे ढंग से किया जाना चाहिये जिससे विषय का अावश्यक सेवन भी हो और विषयाभिलाष शनैः शनैः क्षीण भी होता चले / यह काम अशक्य या असम्भव नहीं है / थोड़ा सा ध्यान देने से ही काम बन सकता है। बात यह है कि विषयोपभोग में दो अंश होते हैं / एक है विषय का उपयोग और दूसरा है विषय में प्रियत्व, श्रेष्ठत्व तथा सौन्दर्य की भावना / शरीर की रक्षा के लिये विषय का उपभोग अपेक्षित है न कि उक्त भावना / और उक्त भावनासे ही विषयोपभोग-विषयाभिलाष का बीज बनता है / अतः काली अर्थात विषय में अप्रियत्व, हीनत्व तथा असौन्दर्य की भावना जब उक्त अभव्य भावना को मुखस्थ कर लेती है तब जैसे भूने हुए बीज से अङ्कर नहीं पैदा होता वैसे उक्त भावना से हीन विषयोपयोगमात्र से विषयाभिलाष का जन्म नहीं होता / और फिर बुद्धि के शस्त्रप्रयोग से विषयामिलाष समाप्त हो जाता है / यही है देवी के हाथ रक्तबीज का वध / रक्तबीज के वध के बाद शुम्भ का अनुज महाबलशाली निशुम्भ अर्थात ममकार-ममत्वाभिमान का युद्ध होता है। यह ममत्व ही सारे अनर्थों की जड़ है। मानव की ममता जिसमें हो जाती है उसमें वह अासक्त हो जाता है, अनुरक्त हो जाता है / उसे छोड़ना नहीं चाहता / उसकी रक्षा का दायित्व अपने ऊपर ले लेता है / ममता की वस्तु के प्रतिकूल जो कोई खड़ा होता है वह मनुष्य का द्वेष्य हो जाता है। शत्रु हो जाता है। उसे पराजित कर अपनी ममता की वस्तु
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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