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________________ ( 18 ) स्वधामान, सत्य, शिव, प्रतर्दन और दशवर्ती इस मन्वन्तर के ये पाँच देवगण हैं। इनके स्वामी सुशान्ति इन्द्र हैं / अच, परशुचि और दिव्य मनु के इन तीन पुत्रों के वंश इस मन्वन्तर के राजबंश हैं। 4. तामस पृथ्वी पर स्वराष्ट नामका एक बड़ा बलवान् राजा हुअा। उसकी आयु इतनी अधिक लम्बी थी कि उसकी अनेक भार्यायें, अनेक मन्त्री तथा अनेकों नौकर चाकर उसके सामने ही मर गये / इससे वह अत्यन्त खिन्न एवं बलहीन हो गया। इसी समय विमर्द नाम के एक राजा ने उसे राज्यच्युत कर उसके राज्य पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इससे दुःखित हो वह जंगल में जा एक नदी के निकट घोर तपस्या करने लगा। वर्षा ऋतु में प्रति वर्षण के कारण नदी में बाढ़ आ गई और वह पानी की तीव्र धारा में बह चला। कुछ दूर जाने पर जल में तैरती हुई एक हरिणी की पूँछ उसके हाथ में लगी, उसे उसने पकड़ लिया। हरिणी के स्पर्श से राजा के मन में काम की भावना जाग उठी। उसकी चेष्टा से इस बात को समझ हरिणी ने कहा / राजन् ! श्रापका मन उचित स्थान में ही चञ्चल हुआ है / मैं आपके लिये अगम्य नहीं हूँ। मैं पहले उत्पलावती नाम की आपकी पत्नी रह चुकी हूँ। एक मुनि के शाप से मृगी का जन्म लेना पड़ा है। शापदाता मुनि के कथनानुसार श्रापके स्पर्श के प्रभाव से मुझे अभी गर्भाधान हो गया है / इस गर्भ में सिद्धवीर्य मुनि के पुत्र महाबाहु लोल ने प्रवेश किया है / वह आपका पुत्र हो समस्त पृथ्वी पर विजय पा मनु का पद प्राप्त करेगा। गर्भावस्था में प्रणय-व्यवहार वर्जित है अत: श्राप अपना मन शान्त कर लें। इस बात को सुन राजा बड़ा प्रसन्न हुअा और अपने मन को संयत कर लिया। हरिणी ने यथासमय पुत्र को जन्म दे उस योनि से मुक्ति पा ली। ऋषियों ने तामसी योनि की माता से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम तामस रखा / जब वह बड़ा हुश्रा और पिता से उसे अपने राजपुत्रत्व का शान हुश्रा तब उसने सूर्यदेव की आराधना से दिव्य अस्त्र प्राप्त कर कतिपय दिनों में ही पिता के सारे शत्रुवों को जीत लिया और समस्त पृथ्वी पर अपना शासन स्थापित कर मनु का पद प्राप्त किया। __ इस मन्वन्तर में सुधि, सुरूप तथा हर आदि सत्ताइस देवगण हुये / महापराक्रमी राजा शिव ने सौ यज्ञकर इन्द्र का पद प्राप्त किया / ज्योतिर्धाम, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, बालक और पीवर इस मन्वन्तर के सप्तर्षि हुये / नर, शान्ति, शान्त, दान्त, जानुजङ घ श्रादि इस मनु के बलशाली पुत्रों के वंश इस मन्वन्तर के राजवंश हुये।
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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