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________________ ( 17 ) मेरा वध कीजिये अथवा मुझे अपनी पत्नी बनाइये। यदि आप पत्नी के रूप में मुझे स्वीकार करेंगे तो मैं श्रापकी पत्नी बन सकने के अनुरूप शरीर में परिवर्तित हो जाऊँगी। यह सुन राजा ने ज्यों ही प्रेम भाव से हरिणी का स्पर्श किया त्यों ही वह एक दिव्य पैमणी के रूप में परिवर्तित हो गई और बोली राजन् ! मैं इस वन की देवी हूँ। देवताओं की इच्छा है कि आप मुझ से एक ऐसा पुत्र पैदा करें जो समस्त भूमण्डल का शासक हो मनु का पद प्राप्त करे / राजा ने उस रमणी की बात मान ली और उससे द्युतिमान् नाम का एक पुत्र पैदा किया / यही पुत्र युवा होने पर स्वारोचिष नाम का मनु हुअा।। ___ पारावत और तुषित इस मन्वन्तर के देवगण हैं / विपश्चित् इन्द्र हैं / अर्ज, साम्ब, प्राण, दत्तोलि, ऋषभ, निश्वर तथा अर्ववीर सप्तर्षि हैं। चैत्र, किम्पुरुष आदि स्वारोचिष के सात पुत्रों के वंश इस मन्वन्तर के राजदंश हैं। 3. औत्तम___ स्वायम्भुव मनु के द्वितीय पुत्र राजा उत्तानपाद की पत्नी सुरुचि से उत्तम नाम का एक पुत्र पैदा हुअा। युवा होने पर उसने परम सुन्दरी बहुला के साथ विवाह किया। वह उस स्त्री से बहुत प्रेम करता था पर वह स्त्री बुरे मुहूर्त में विवाहित होने के कारण उससे प्रसन्न नहीं रहती थी। एक दिन सभा में प्रेमविहल हो राजा बड़े अादर से उसे सुरा का पानपात्र देने लगा किन्तु उस स्त्री ने अस्वीकार कर दिया। राजा ने अनेक जनों के समक्ष उसके इस व्यवहार से अपना भारी अपमान समझा और ऋद्ध हो उसे जंगल भेज दिया। कुछ दिन बाद जब उसे यह ज्ञात हुअा कि पत्नी के अभाव में इह लोक और परलोक दोनों की हानि होती है। पत्नी के विना मनुष्य का जीवन निरर्थक है। पत्नी का त्याग महान् पाप है / तब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ और अपनी पत्नी को प्राप्त करने के लिये अातुर हो उठा। एक ऋषि ने उसे बताया कि उसकी पत्नी पाताल में नागराज की कन्या नन्दा के साथ सुरक्षित है और उसका चरित्र पवित्र है / वहाँ से वह उसे प्राप्त कर सकता है / यह जान राजा ने अपनी पत्नी का प्रेम पाने के निमित्त अपने नगर के एक ब्राह्मण से मित्रबिन्दा इष्टिका अनुष्ठान कराया। अनुष्ठान पूर्ण हो जाने पर राजा ने अपने राज्य के महाशक्तिशाली एक राक्षस को आज्ञा दी कि वह पाताल से उसकी पत्नी को ले आये। आज्ञानुसार वह राक्षस पाताल गया और वहां से रानी को ला राजा को सौंप दिया / अब रानी राजा पर अासक्त हो गई थी। अत: दोनों सुखपूर्वक रहने लगे। कुछ दिन पश्चात् उसके एक महापराक्रमशाली पुत्र पैदा हुआ, जो युवा होने पर श्रौत्तम नाम का मनु हुअा / 2 मा० पु०
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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