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________________ पुराण के लक्षण और मार्कण्डेय पुराण पुराण के उपर्युक्त लक्षण की कसौटी पर मार्कण्डेय पुराण को कसने पर ज्ञात होता है कि यह एक पूर्ण पुराण है क्योंकि इसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का विमल वर्णन प्रस्तुत किया गया है। उदाहरणार्थ कतिपय सम्बन्धित बातों की चर्चा आगे की जा रही है। सर्ग-सृष्टि मार्कण्डेय पुराण के 47 वें अध्याय से 55 वें अध्याय तक सर्ग का र्णन किया गया है। निष्क्रिय रूप से समभावेन अवस्थित प्रकृति और पुरुष में सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ परमेश्वर का अनुप्रवेश होकर प्रकृति के क्षोभ से सर्ग का श्रारम्भ बताया गया है / 47 वें अध्याय में सर्ग के मुख्य तीन भेदों का निर्देश प्राप्त होता है-प्राकृत, वैकृत और कौमार / प्राकृत सर्ग के तीन भेद हैं-ब्रह्मसर्ग, भूतसर्ग तथा इन्द्रियसर्ग। वैकृत सर्ग के पाँच भेद हैं—मुख्यसर्ग, तिर्यक्सर्ग, देवसर्ग, मानुष सर्ग और अनुग्रह सर्ग / कौमार सर्ग का दूसरा नाम रुद्रसर्ग है, इसके किसी अवान्तर भेद का उल्लेख नहीं है / इन सर्गों की चर्चा अगले श्लोकों में है प्रथमो महतः सर्गो विज्ञेयो ब्रह्मणस्तु सः / तन्मात्राणां द्वितीयस्तु भूतसर्गः स उच्यते // ___ महान् ब्रह्मा की उत्पत्ति प्रथम अर्थात ब्रह्मसर्ग है और तन्मात्र ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ) की उत्पत्ति द्वितीय सर्ग है जिसे भूतसर्ग कहा जाता है। वैकारिकस्तृतीयस्तु सर्गश्चैन्द्रियकः स्मृतः / इत्येष प्राकृतः सर्गः सम्भूतो बुद्धिपूर्वकः॥ तीसरा इन्द्रिय सर्ग है जिसे वैकारिक भी कहा जाता है / यही तीन प्राकृत सर्ग हैं / इनकी उत्पत्ति बुद्धिपूर्वक होती है। मुख्यसर्गश्चतुर्थस्तु मुख्या वै स्थावराः स्मृताः। तिर्यस्रोतस्तु यः प्रोक्तस्तिर्यग्योन्यः स पञ्चमः॥ मुख्य के माने हैं स्थावर अर्थात भूमि, पर्वत, वृक्ष श्रादि / इनकी उत्पत्ति चौथा सर्ग है। इसी का नाम मुख्य सर्ग है / तिर्यक अर्थात पशु, पक्षी, सर्प आदि की उत्पत्ति पाँचवाँ सर्ग है जिसे तिर्यक्स्रोत या तिर्यक्सर्ग नाम से कहा गया है। ततो_स्रोतसां षष्ठो देवसर्गस्तु स स्मृतः। ततोऽर्वाक्स्रोतसां सर्गः सप्तमः स तु मानुषः॥
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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