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________________ ( 7 ) ले लिया तब बे बड़े असमंजस में पड़े। उन्होंने सोचा कि यदि मैं अब दुर्योधन के पक्ष में जाता हूँ तो कृष्ण के साथ विरोध करना होगा जो मेरे लिये उचित नहीं है और यदि कृष्ण के कारण पाण्डवों का पक्ष लेता हूँ तो दुर्योधन का विरोध करना होगा, और यह भी मेरे लिये नितान्त अनुचित है क्योंकि दुर्योधन के साथ मेरे अनेक प्रिय नाते हैं, अतः उन्होंने निश्चय किया कि मैं किसी नहीं जाते तब तक तीर्थयात्रा करूँगा / इस निश्चय के अनुसार वे अपनी पत्नी रेवती तथा थोड़े से परिजन साथ में ले तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़े। इस यात्रा में ही एक बार उन्होंने अधिक मात्रा में मद्यपान कर रैवत वन में प्रवेश किया / उस समय वहाँ सूत जी ऋषियों के बीच पुराणों का प्रवचन कर रहे थे / ऋषियों ने मद्यपान से उन्मत्त हुये बलदेव जी को देखकर अासन से उठ उनका सत्कार किया, पर सूत जी ने व्यासासन की मर्यादा को ध्यान में रख अासन का त्याग नहीं किया। इससे क्रुद्ध हो उन्मत्त बलदेव ने सूत जी का वध कर दिया / इस घटना से खिन्न हो ऋषिगण उस वन को छोड़कर चल दिये / बाद में जब बलदेव जी का उन्माद उतरा तब उन्हें अपने अपराध का ज्ञान हुआ और उन्होंने अपने को ब्रह्महत्या के पाप से लिप्त समझा / इस ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने के निमित्त अपने पाप का कीर्तन करते हुये उन्होंने पुनः नये सिरे से महती तीर्थयात्रा का उपक्रम किया। चौथे प्रश्न का उत्तर जब विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र का सारा राज्य दान के रूप में प्राप्त कर लिया और राजसूय यज्ञ की पूर्व-प्रतिज्ञात दक्षिणा का राज्य के बाहर से प्रबन्ध करने के लिये लाठी से मार उन्हें राज्य से बाहर करने की क्रूर चेष्टा करने लगे तब राजा की वह दयनीय दशा देख विश्वेदेवों को दया आ गई और वे विश्वामित्र की क्रूरता की निन्दा करने लगे। इस बात से कुपित हो विश्वामित्र ने उन्हें मनुष्य योनि में पैदा होने का शाप दे दिया। शाप से त्रस्त हो विश्वेदेवों ने उनके अनुग्रह की याचना की। उन्होंने कहा कि मेरा वचन अन्यथा नहीं हो सकता, मनुष्य योनि में तो आप लोगों को अब पैदा होना ही पड़ेगा। हाँ, मनुष्य होकर आप लोग वहाँ के बन्धनों में अनन्त काल के लिये फँस न जायँ इसके लिये मैं आप लोगों को छूट देता हूँ। अत: मनुष्य होने पर भी आप लोग दारसंग्रह और सन्तानोत्पादन के प्रपञ्च में न पड़ेंगे तथा मनुष्य के काम, क्रोध आदि सहज दोष आप लोगों को दूषित न कर सकेंगे। विश्वामित्र के इस शाप और अनुग्रह के कारण ही विश्वेदेवों का द्रौपदी के गर्भ से जन्म हुआ और अविवाहित अवस्था में ही वे मार डाले गये /
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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