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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. अशुना पण परिणामे ॥ तेम विषय छीना जाणो। परनव पुरक स नामे ॥ संजल० ॥ ५॥ रमे राग देखो रुप रुहुँ । मन माहे अतिरीके ॥ देखि विशेष पतंग तणीपर । पमी अगनिमाहे सीके ॥संजल ॥ ६॥ मीन जेम रस रातो प्राणी । पेखि मंस मुख वाहे ॥ कूटे वींध्यो अति तमफमतो। धीवर वेरी साहें ॥संजल ॥ ७॥ नव नव गंधे नमरो रातो।केतकि कंटे खूचे ॥ सहे परानव इणिपर मानव । गंध विषय ते विगूचे ॥संनल ॥॥ संजलि सबद गीत धुनि रुमी। रुपे हरिण पराण ॥ एम मुख शब्द थकी लहे मानव। विषय पुरक सपराण संनल ॥ ए ॥ करिवर विंध्याचलनो वासी। करिणी फरसे रातो ॥ लहे पराजव इणिपर मानव। फरस विषय मद मातो॥संनल ॥१॥ चपल चित्त चिहुं दिसि ऊलफलतो । लहे पुरक असंतोषी ॥ वीतराग जावे जीव सुखियो । जे हुवे मुगति गवेषी ॥ संजल ॥११॥ विषय तणा सुख कादम समवम । जे मे तसु संग ॥श्रीब्रह्म कहे ते मुनिवरना
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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