SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. ११ को मुख न वहेचे सुख न संचे गणो एकत नावना ॥ जे कहे एकल झान शिवपुर ते अजाण गिणो सही। संयोग ज्ञान क्रिया बिझ्ने सिद्धि श्री जिणवर कही ॥२॥ जिमरथ २ चक्र बिहुं फिरेए । उमए ५ पंखि बे पंखके ॥ अंध पंगु बे वन रहेए। नगरें र थर जाए एकके । जिम रथ चक्र बिहं फिरेए-फिरे रथ जिम बिहं चक्रे तिम क्रिया ज्ञानें मिली। कर्म आठ दय करि सिछि सयंवर जाते थइ केवली ॥ एहवा मणिवर जेय जग माहे तासु पाए लागीए । कहे ब्रह्म सेवा साधुनी करि ज्ञान चारित्र मागीए ॥३॥ ___ इति निग्रंथीय गीतम् ॥ ६॥ श्री एलकाध्ययन सज्जाय । ( आरत रौद्र निवारिअ-ए देशीमां) जिम कोई नर पोसए । उरणजाति विसेसए । विहसए मन मातो देखी घYए । पाहुणमा जोए वाटमी । कुण आवे केही घमी। श्म चमी जोतां आ
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy