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________________ श्री सोल सतियोनो सज्झायो. धर। राजचंधसूरि रायाजी ॥ श्रवण शषि शिष्य मुनि मेघराजे । सोल सती गुण गायाजी ॥५॥ श्री जिन ॥ (कुल गाथा ३५०) श्री जिनप्रतिमा स्थापन सज्जाय. ( आदि अजित श्री शांतिनो, दीठो०-ए देशी.) श्रीवीरजिणेसर पय नमी । बाराही गोयम गणराय ॥ रास नणिसु प्रतिमातणो । जिम आगम बोल्यो जिनराय ॥ १॥ प्रश्चन वचन संजालज्यो । जिनवरनी वहिज्यो सिर आण ॥ मन सुके जिन पूजज्यो । ए तुम्ह करिज्यो वचन प्रमाण । सुखें करी सुख पामज्यो ॥२॥ आंकणी ॥ आगम माहे जाषियो । धर्म तणा ले दोइ प्रकार ॥ आगारी श्रावक कह्या । अणगारी बोल्या मुनिसार ॥ ॥३॥ प्रवचन ॥ साधु मारग श्रावक करे । साधु करें श्रावकनो धर्म ॥ ते विराधक जिण कया । हिये विमासी जोज्यो मर्म ॥४॥॥ जरत देनेजे मुनि हुधा । थाझालोपी थया जिन चोर ॥ पाखंगी मुनि
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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