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________________ १८८ श्री सोल सतीयोनी सज्झायो. रे बांणहरांमाइ ते दीयां ॥ मेलीयां । घर कुण वांके रें हु बंकी जोवो इसु । पूढे सुसरो रे वायस बोले वे किस्ः - कहे वायस वृक्ष देवे, सोनुं दस लख । ते काढि कल हल तेज देखी, विबे I हस्युं मन सुसरात ॥ वली पूढे नयर जवस, वास वसतुं किम कछु | बहू बोले तेहज वस्ति, जिहां आपण साजण लघु ॥ ५ ॥ वम मूंकी रे तरुके बेठी ते कि । कहे वहु र रे तुमे न जाणो वो इस्यु ॥ वरु बेठो रे वायस विष्टा जो करे । स्त्री माथे रे बह मास मांहि पति मरे:- कहो वस्ति नयर जवस कहि केम थापणुं । सती बोले स्युं किजे जिहां को नही आपणं ॥ पहिर जुती नदी मांहि उतरी कारण किस्युं । जल सर्प कांटादिक न पीछे सेवनुं मन उलस्युं ॥ ६ ॥ लेइ सोवन रे पाठी आणी कुल वहू । घर स्वामिनी रे कधी हर्ष्या तिहां सहू ॥ सती पति राए दीठो गुण जर्यो । तूठे नृपरे जितसेन मंत्री कर्योः - थयो मंत्री कटक जातां, घरे नारीने कहे । ।
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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