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________________ १८७ श्री सोल सतीयोनी सज्झायो. गरे इहां रहीने स्युं करा ॥ वाप्ये वमलो एक देखी सेठ बाया वीसमे । वह तमके जर बेठी, शाह रीसें धम धमे ॥२॥ गाम सूनुं रे वाटे घर पांच ब बसे । ते देखी रे वहअरनुं मन उन्हसे ॥ सेठ बोले रे सूने गामि नहीं रहां । कहे वहूअर रे पिताजी हां रहाः-एम कहतां मामाने घरे, भक्ति पूरवक ते जम्यां । वली चाट्यां वृदा देखी, बिपहुरे जश् विसम्या ॥ वहू रोटीने करंबो, जिमत देखी कागलो । करे कर रख बहू बोले, मांगे स्यु करंबलो ॥३॥ धन राखो रे माहरे काम न तसु तणुं । आगे सिवा रे बोलीने दी सूषण पणु ॥ एहवं सांजलि रे सुसरो पूढे वहूयने । एह वायसरे सुं कहें डे तुहनेः-कहे वहूअर सुणो सुलरा, गुण सहु मुज अवगुण थया ॥ बालनाव गुरुए मुऊन, शकुन नाव सवे कह्या ॥ तेणे जाणुं शिवा बोली, ते शब्द अनुसारथी। घमे बेसी नदी उतरी, मृतक काढयो नीरथी ॥ ४ ॥ तेहनी कमीथकी रे आजरण हुतां
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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