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________________ श्री सोल सतीओनी सज्झायो. . १८१ मुनिवर तीहां पधार्या । धर्म देसण सूझवे ॥ नलराय पूढे कहो नगवन, पूरव जव कीधो किस्यु । बार वर्षा लगे जेणे सुख पाम्या मे इस्यु ॥५॥ गुरु कहे राय ठे नवे । मम्मण नूप तुं हुतो रे॥ वीरमतीस्युं परिवर्यो । रामतिवने पहतो रे ॥ वने पहुते एक मुनिवर, देखी घणुं संतापी । बार घटीका साधुने ते, वचन कथने तापी ॥ पडे मुनिवर शांत देखी, पाय लागी खमावी । घरे तेमी सूत्र सांजलि, जैनधर्मे जाविर्ड ॥६॥ तिणे कर्मे तुम्हे पाम्यो। राजन मुख अपारो रे ॥ पड़े धर्म आराधी । तिणि पाम्युं सुख सारो रे ॥-एम सांजलि सती साथे, दोख लेश् सुर थयो । देवी दमयंती चवीने, उत्तम माणस जव लह्यो । वसुदेव परण। शीलयोगे, पामि केवलि सिकि गई। मुनि मेघराजे सती मोटी, आठमी इणिपरे कही ॥७॥ ९ श्रीशीलविण कमला महामतीनी सज्जाय. (शालीभद्र मोह्यो अथवा उत्तराध्ययनें बोल्या सोलमेंजी-ए देशी.) नरुप नगरे मेघरथ राजीयो रे । बेटी कमला नाम ॥ एहवे सोपारा पाटण राजीयो रे । रति ववन
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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