SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ श्री एकादश गणधरनी सज्झायो. गणधर वंदिये। नामे शिव सुख थायजी॥ नर नारी जे तुम्हचा गुण थुणे। ते वंडित फल पायजी ॥२॥ अचलत्राता (यांकणी) वसु विप्र कुल मंगण जगतिलो। नंदा उर सिणगारोजी ॥ नत्र जनम मृगशिर जोवज्यो। गोत्र सुहारिद सारोजी ॥३॥ अचल जाता ॥ वरस बेतालीस गृहस्थ पणे रह्या । पुनरपि चारित्र लीधोजी॥ शिष्य त्रणसेंस्यो सोहे परवयों। जनम सफल जिण कीधोजी ॥॥अच॥ बार वरस लगें उमथ्थ विचरीया। चउदस वरस निर्मल नाणोजी॥ लोकालोक प्रकासे मुनिवर। जाण के उदय नाणोजी॥ अचल ॥५॥ वरस बहुत्तर सर्व आयुस सही। पुन्य फल्यो मुज आजोजी॥गणपति शिष्य कहे वीरजिण दंसणे। सीधा सघला काजोजी॥६॥अचाइति॥ ॥श्री मेतार्य गणधर सज्जायम् ॥१०॥ (गुजराती फूलडांनी-ए देशी.) गणधर गुण हियमे धरो रे। पामो हरष अपार ॥ गणधर मेतारज जलो रे। एक एक मांहि सार रे॥१॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy