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________________ श्री एकादश गणधरनी सज्झायो. १६३ राय रे । वीरजिणवर वंदण श्राव्यो । उलट ते अति घण थाय रे ॥१॥ अहम गणधर अति अनुपम (आंकणी) नाम नगरी अ मिथुला । जनम थानक हो रे॥ देव विप्र जसु जनक जाणो। मात जयंती जो रे॥२॥ अहम ॥ उत्तराषाढ नखत्र योगे। चंडसम अवतार रे॥ गौतम गोत्र पवित्र जेहन। गृही. पणे वर्ष अमताल रे ॥३॥ अहम ॥ शिष्य त्रणले अति विचरण । वरष नव उउमथ्य रे। वरस एकवीस केवल परिया। कर्म दय परमथ्य रे ॥४॥अहम०॥ वरस अठोत्तर सरव आयु। नरक संशय टालि रे॥ गणपति शिष्य गणधर सोहाकर। आण जिणनी पालि रे ॥५॥अहम॥ इति ॥ ॥श्री अचलभ्राता गणधर सज्जायम् ॥॥ (पांचे इंद्री अहनिशि वस करे-ए देशी) नवमा गणधर जगमांहि जाणीये । अचल जाता जसु नामोजी॥ कोसला नगरी सकल सोहामणी। जनम थयो शुन गमोजी ॥१॥ अचल जाता मुनि
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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