SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१५६ श्री अढार पापस्थान परिहारनो सज्झाया. चार | मन शुद्ध परिहरो पाप अढार (कणी )| परिग्रह क्रोध वलि मानने माया । लोज बे सयल डूषण ता पाया ॥२॥ संरागने द्वेष गिए कलहने आल | पिशुनपलूं रति रति विशाल ॥ ३॥ संज० ॥ परिवाद माया मृषा वाणी । वलिय मिथ्यात शब्य परिहरो जाणी ॥ ४ ॥ सं० ॥ एहत बल जीव अनादि । ख घणा सह्या पमे प्रमादि ||५|| संज०॥ एहनो जेय करे परिहार | मुगति तणां सुख ते लहे सार ॥ ६॥ संज०॥ श्रीब्रह्म कहे इम आणंद आणी । साधुने वंदज्यो जवियण प्रांणी ॥ ७ ॥ संज० ॥ ॥ इतिश्री ब्रह्मर्षिणात अष्टादश पापस्थान स्वाध्याय संपूर्णेति भद्रम् ॥ ग्रंथाग्रम् ३५० ॥ श्री एकादश गणधर सज्झायम्. || श्री इंनूति गणधर सज्झायम् ॥ ( अष्टमो जिणवर जगजयो - ए देशी. ) गणधर इंद्रभूति गुण निलो । गुब्वर पुरि कावतार रे ॥ वसुभूति तात सोहे सदा । मात पृथवी
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy