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________________ श्रा अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. १५५ ॥१५॥ आग ॥ दोष अढार रहित जला । परखो अरिहंत देव ॥ समकित व्रत तप गुण नर्या । साधु तणी करो सेव ॥ १३॥ आग०॥ नाषो सूत्र परंपरा। ते आराधो धर्म ॥ तत्व खरं त्रण ए अ । समकित मूल मर्म ॥ १४ ॥ आग पाप सतर हलूया गिणो । मोटो जार मिथ्यात ॥ जीव तणे पोते अ । काल अनादि विख्यात ॥ १५॥ याग० ॥ पांच संवर मांहे पहिलहुँ। कहे समकित जिनराज ॥ आश्रव धुर मिथ्यात । बंमी लहो शिवराज ॥१६॥ आग०॥ अरहन्नक दृढपणे रडुं। घणू चलाव्युं देव ॥ समकित सुलसा पालियूं। श्रावक वलि कामदेव ॥१७॥ आग ॥ श्म समकित परवी करी। पाले अरिहंत आण ॥ श्रीब्रह्म कहे सुरनर सहु । तिहनूं करे वखाण ॥१७॥ आग ॥ इति (कलशः-सकल मुख पूरे-ए देशी.) जीव वध असत्य वचन अने चोरी । नारिनी संगति पाप नीनरी ॥१॥ संजलो प्राणिय एह वि
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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