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________________ हे प्रभु! जब तू गंधहस्ती बनकर आता है तो हमें भी हाथी का बच्चा बनकर तेरे सामने पेश होना पडेगा। हमारी स्थिति तो गजस्नान वाली है। गजस्नान एक कहावत है। हाथी उँचाई वाले होते हैं। उनको नदी, तालाब में नहलाये जाते है। महावत उसका तेल लगाकर घिसघिस कर मालिश करता है। तेल पानी की मालिश होते ही हाथी की बॉडी चमकती हैं। वह हाथी शोभायात्रा को सुशोभीत करता है। महावत उसे नहला धुला कर, तेल मालिश कर किनारे पर बैठाकर फिर स्वयं स्नान करता है। नहाते ही हाथी सारी रेती को अंग पर डाल देता है। जितना देह चिकना होता है उतनी रेत ज्यादा चिपकती है। महावत जब वापस लौटकर देखता है तो तट पर खड़ा हाथी रेत से सना हुआ होता है। महावत हाथी की स्थिति को देखकर माथेपर हाथ रखता है। इसलिए गजस्नान की कहावत हमारी धर्मचर्चाओ में अधिक चलती है। धार्मिक प्रक्रियाओं से हम चमकदार होते हैं। माला कायोत्सर्ग सामायिक ये सब हमारी स्नान की प्रक्रियाँए हैं। स्नान के बाद सद्गुरु सत्संग का मालिश कर हमपर चमक लाते हैं। साधना की चिकनाइ से हम निखरते तो हैं पर संसार के तटपर आकर विषय कषाय की रेत से सन जाने की हमें आदत है। आजकल महावत लोग हाथी को नहलाने के लिए ऐसे तट पर ले जाते हैं जहाँ पर रेत नहीं रहती है। क्योंकि रेत देखकर ही हाथी मस्ती में आ जाते हैं। तुरन्त रेत में जाना। सुंड से उछाल उछाल करके पूरि बॉडी पर रेत डालना। जब तक रेत से पूरे सनते नहीं तब तक उनको शांति नहीं होती हैं। इसलिए महावत गज को स्नान कराकर तटपर छोडते ही नहीं है। जब तक खुद का स्नान होता है वह हाथी को पकड करके पानी में बिठाए रखता है। चुपचाप इधर ही पानी में बैठा रह, पानी के साथ खेल। फटाफट महावत नहा करके हाथी को पकडकर नदी के तट से बाहर निकलता है और तुरंत ही तट छोड देता है। हमारी भी ऐसी स्थिति है। सद्गुरु सत्संग से नहलाकर शुद्ध करते हैं पर हम सत्संग से बाहर आते ही पुनः सांसारिकता की रेत से सन जाते हैं। परमात्मा का तीर्थ एक ऐसी जगह है कि जहाँ पर रेत नहीं है। सद्गुरु रुप महावत हमें भगवान के समवसरण में ले चलते हैं, जहाँ रेत नहीं होती हैं परंतु परमात्मा रुप गंधहस्ती होते हैं। समवसरण में हमें शुद्ध रहकर शांति से बैठना हैं। गंधहस्ती के आदेश का पालन करना है। परमात्मा आदेश करते हैं - अभितुरपारंगमितए। वत्स ! शीघ्र ही तट से पार होजा। अनेक प्रयासों के बाद तुम तटपर पहुंच पाए हो। अब तटपर खेलते रहना तुम्हें शोभा नहीं देता। शिघ्र ही पार हो जाओ। तटपर अधिक समय बीताते हुए समुंदर की एकाद लहर भी तुम्हें वापस समुंदर में धकेल सकती है। समय को व्यर्थ बरबाद न करो। धर्म को जानो और स्वयं की अनुप्रेक्षा करो। एक दिन भरतचक्रवर्ती भगवान ऋषभ देव के समवसरण में घबराते हुए आए और कहने लगे, प्रभु आपका स्मरण करके शरण लेकर रात को सोया फिर भी मुझे सोलह विचित्र स्वप्न आए उनमें एक ऐसा स्वप्न था कि, हाथी की पीठ पर मनुष्य के स्थानपर एक बंदर बैठा हुआ था। हाथी के कुंभस्थल से जो मद झरता था उसे बंदर ने चाटने का प्रयास करता था। उसके इस प्रकार चेष्टा करते ही हाथी का मद झरना बंद हो गया। भगवान ने भरत के मस्तक पर हाथ रखकर कहा, राजन! तुम्हारा स्वप्न भविष्य का कथन है। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद भारत 87
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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