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________________ परम अस्तित्त्व के स्पर्शन और दर्शन की मुझे दिव्य अनुभूति प्राप्त हो रही है। मेरे भीतर के नयनकमल आनंदविभोर हो रहे है। मेरे आभ्यंतर में आपका आगमन होने से मेरा हजारों पंखुडी वाला सहस्रारकमल खिल उठता है वह खिलता है, खुलता है तो उसमें आपकी प्रसन्नता का पवित्र स्रोत बहने लगता है। आपके चरणकमल और मेरा मस्तकमल का आज अद्भुत संयोग हुआ है वह मेरा संगम तीर्थ बन गया। आपका तीर्थत्व मेरे इस तीर्थ में प्रगट हो गया। आपके साक्षात स्वरुपकी मुझमें अनुभूति हो रही है। प्रभु के ऐसे साक्षात स्वरुप के दर्शन करके भी पुनः हम इस संसार में लौट आते हैं। संसार रुप सरोवर के इस तलघर में राग द्वेष का कीचड जमा है। राग द्वेष के घमशान युद्ध में संकट हरण चरणकमल के ध्यान के दो अद्भुत प्रयोग भक्तामर स्त्रोत्र में प्राप्त होते है। कमलवन और कमलरज का ध्यान। दो परिस्थिति में मानव को हताशा और निराशा होती है - राग और रोग में। राग से द्वेष विषय कषाय मोह माया आदि समझे जाते हैं। रोग से हताशा, निराशा, मानसिक विह्वलता और देह से संबधित भयंकर रोग आदि समझे जाते हैं। रागजन्य स्थिति में कमलवन का ध्यान करना चाहिए और रोगजन्य स्थिति में कमलरज का ध्यान करना चाहिए। कमलवन के ध्यान में स्वयं को मध्य में स्थापित करते हुए स्वयं के चारों ओर वृत्ताकार में वन उपवनों को निर्मित करें। वन का कोई भी स्थान तनिक मात्र भी खाली नहीं होना चाहिए। प्रतिस्थान में कमल हो और प्रति कमल पर परमात्मा के चरणयुगल प्रस्थापित हो। जहाँ देखो वहाँ दूरदूर तक चारों तरफ चरण युगल सहित कमलवन के दर्शन हो रहे है। कमल का सौंदर्य, शीतलता, सुवास का अनुभव हो रहा है। संपूर्ण वातावरण हमारे भीतर की आकुलता व्याकुलता को समाप्त कर रहा है। शांत, निरव, एकांत वातावरण परमात्मा की वीतरागता का अनुभव करा रहा है। दूसरा ध्यान है कमलरज का। आप जानते हो प्रत्येक पुष्प के मध्यभाग में कर्णिका के ऊपर पुष्प की रज होती है। इसे पराग भी कहते है। इसी में से सुवास निकलती हैं। कमल के पराग का बहुत महत्त्व होता है। कमल के नाल में निहित तंतु सुदीर्घ होता है। तान लेने पर वह इलास्टिक की तरह खींचता है पर टूटता नहीं। इसीलिए प्रेम में कमल शब्द का अधिक प्रयोग होता है। इसी दीर्घता के कारण इसका पराग भी शक्ति संपन्न होता है। पराग को पुष्ट होने का अवसर मिलता हैं तब वह एक अलग फूल का रुप लेता है। जो समय के साथ फ़ल बन जाता है। जिसे कमलगट्टा कहा जाता है। इसके सुख जानेपर दानों की माला बनती हैं जिसका लक्ष्मी प्राप्ति के लिए मंत्र जप में उपयोग किया जाता है। यह सबकुछ बनने से पूर्व जब मात्र रज होती है उसका अंश मात्र भी प्राप्त हो तो वह अनेक रोगों का नाश करने में समर्थ होता है। इसे अमर वरदान माना जाता है। भयंकर रोग की स्थिति में परमात्मा के दोनों चरण कमल के उपर प्रस्थापित हो उसका स्पर्श करते हुए चरणरज लेकर रोगी के उपर लगाया जाता हैं तो भयंकर रोग में भी समाधि प्राप्त होती है। __ हे परमतत्त्व! भवभवांतर से हम इस संसार के राग द्वेष के भयंकर युद्धक्षेत्र में युद्ध कर रहे हैं। जीत जीत कर हार रहें हैं। इस जन्म में भी तो नव लाख जीवों के साथ युद्ध किया। स्ट्रगल किया, किसी को धक्का मारा, किसी को दूर किया, किसी को हटाया, किसी को हराया तब मैं ने जन्म लिया। जीत जीत के हारा और हार हार कर जीता
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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