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________________ भक्तामर स्तोत्र में मुनि मानतुंगाचार्य ने कहा है- "व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ।” हे भगवान! व्यक्त होने के कारण आप पुरुषोत्तम हो । आप मेरे मन में, तन में, सर्व आत्म प्रदेशों में व्यक्त हो गए। अभिव्यक्त हो गए। साक्षात् हो गए और स्वर बनकर स्तोत्र के रुप में संसार में प्रगट हो गए। भक्तामर के पुस्तक में आपने पढा होगा कि शक्रेन्द्र ने आचार्य श्री को बिनती की थी प्रभु! आप हमें बेडियों को तोडने की आज्ञा दिजिए। शासन का चमत्कार होगा। धर्म का प्रचार होगा और आपका महिमा विश्व में फैलेगा। आचार्य श्री ने कहा था, शक्रेन्द्र! ऐसी किसी भी प्रकार की हरकत मैं नहीं होने दूंगा। मुझे ये बताओ की राजाने ऐसा क्यों किया? किसी ने राजा को चढाए और राजा ने मेरी परीक्षा ली ये सब क्षुल्लक बाते हैं। यदि मेरे कर्मों में ही ऐसा न लिखा होता तो बिचारा राजा क्या कर सकता था । यदि तुम मेरे कर्मों की बेडी के बंधन तोड सकते है तो तोड दो । करो चमत्कार । बाकी तो शासन स्वयं चमत्कार है। हम क्या चमत्कार करेंगे। शक्रेन्द्र ने कर्मक्षय में सहायता करने का असामर्थ्य प्रगट किया। मुनिश्री उनके ध्यान में लीन हो गए, जो कर्मक्षय में सहायता करने के लिए हरवक्त व्यक्त रहते हैं, जो पुरुषोत्तम बनकर आते हैं । जैसा मुनि मानतुंगाचार्य के साथ में हुआ वैसा हमारे साथ क्यों नहीं होता है? ऐसा प्रश्न आपक होगा। इसका उत्तर ज्ञानी पुरुष देते है कि, “कपट रहित थई आतमअरपणा" - कपट रहित होकर आत्मा का अर्पण कर दो। परम पुरुष के चरणों में अपना सबकुछ न्योच्छावर कर दो। परमात्मा आपके है आप परमात्मा के हो। आपको किसी ओर माध्यम की आवश्यकता नहीं है । जब आत्मा के नमस्कार हो चुके तो मन और तन को नमस्कार करने की आवश्यकता नही है । अपने आप नमस्कार हो जाते है । इसीकारण यहाँ नमो अरिहंताणं और नमोत्थुणं अरिहंताणं शब्द का प्रयोग हुआ है। नमामि शब्द कतृत्त्व का सूचक है। मैं नमस्कार करता हूँ। नमो भाववाचक शब्द है। नमस्कार करता नहीं हूँ पर नमस्कार हो जाते हैं। क्योंकि भगवान् ! आप नमस्कृत्य हो । जो काम कर के छिप जाते हैं उन्हें भगवान कहते हैं। जो काम करके प्रगट हो जाते हैं उसे इन्सान कहते हैं। जो काम न करके प्रगट होता है उसे शैतान कहते हैं। इतने बडे तीर्थ का निर्माण किया, संघ की स्थापना की, हमें समाचारी दी और चले गए। कहाँ चले गए? हमारा महाव्रतों का संविधान, आपका अणुव्रतों का संविधान, हमारी श्रमण समाचारी, आपकी श्रावक समाचा कितना कुछ बनाया, कितना कुछ दिया और चले गए। कहाँ चले गए? ऐसे छिप गए कि, हम हमेशा खोजते रह गए। इसीलिए कहा जाता हैं, जो काम करके छिप जाते हैं उन्हे भगवान कहते है। अब देखो इन्सान की हालत क्या है। काम करके प्रगट हुए बिना मानव नहीं रह सकता। कभी कभी ऐसा भी कहने को मन करता हैं कि, प्रगट होने के लिए ही काम करते हैं। चुनाव के टाईम में विजय पाने के लिए कितना आश्वासन दिया जाता हैं। कितनी गिफ्ट दी जाती है। विजय हो जाने पर कितने सन्मान की अपेक्षा होती है। यदि कही सन्मान ना हुआ हो उन्हे दुश्मन माना 61
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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