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________________ नन्मोत्थुणं - पुरिसुत्तमाणं जो व्यक्त होने पर भी अव्यक्त रहते है वे भगवान है। जो अव्यक्त रहनेपर भी व्यक्त होता है वह इन्सान है। जो व्यक्त में अव्यक्त हैं वे भगवान है। जो अव्यक्त में व्यक है वह इन्सान है। भगवान भगवत् सत्ता में व्यक्त हैं, प्रगट है फिर भी हमेंशा अव्यक्त रहते है, अप्रगट रहते हैं, छिपे रहते हैं। इतने छिपते हैं कि कभी तो वे है ही नहीं ऐसी अनुभूति होती हैं। कईबार उन्हें खोजते खोजते हम खो जाते हैं। पुरिसुत्तमाणं पद में दो शब्द है पुरुष और उत्तम। पुरुषोंमे उत्तम पुरुष को नमस्कार हो। पुरुष की व्याख्या करते हुए व्याख्याकार कहते हैं, पुर अर्थात नगर श अर्थात शयन करने वाला। पुर शब्द पर से जयपुर, जोधपुर, नागपुर आदि शहरों को पुर शब्द लगता है। हमारा शरीर एक नगर हैं। जिसमें रहने वाला आत्मा जब शरीर के साथ एकत्त्व स्थापित करता है तब मुर्छित रहता है। जो संबंध, स्थिति और हरकत शरीर में होती है वह मुझे अर्थात् आत्मा को होती है ऐसा माना जाता है। जब आत्मा संबुद्ध होती है, जाग्रत होती है तब उसे देह के साथ भिन्नता का बोध हो जाता है । इस बोध का होना उत्तमता का सूचक है। स्वयं का स्वयं पर नियंत्रण होना तीनो लोकोंपर उत्तमता का सूचक है। सोते हुए तो हमने अन्यों को कई बार जगाये परंतु परमात्मा कहते है इस देह के भीतर परमतत्त्व सोया हुआ है। भगवत्सत्ता सुषुप्त है। उस छीपी हुई भगवत्सत्ता को जगाना है। अस्तित्त्व को व्यक्त करना है। जो स्वयं में व्यक्त होकर अन्य को व्यक्त करता हैं वे पुरुषोत्तम हैं। व्यक्त होना अर्थात् साक्षात्कार होना। अस्तित्त्व का स्वीकार हो जाना। हमारा नमस्कार उनको हो रहा है, जिनका साक्षी का स्वीकार हो गया। भक्तामर में कहा है, "व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि।" हे भगवन् ! व्यक्त हो जाने के कारण आप पुरुषोत्तम हो। नमस्कार महामंत्र में पंचपरमेष्ठि भगवान की स्वरुपसाक्षी है। नमो में हमारी अस्तित्त्वसाक्षी हैं। नवकार मंत्र जो रोज गिना जाता है, उसी में साक्षी को खोजोगे तो कठिन लगेगा। नवकार मंत्र में परमेष्ठि भगवान पांच हैं। क्या इसमें कही आप हैं? नवकार मंत्र में आपका स्थान कहाँ है बताओगे? लगता हैं ना आपको मैं गलत हूँ? मुझे यह पूछना चाहिए था कि नवकार मंत्र में आप हैं या नहीं? आप स्तब्ध हो गए। बचपन से आप यही सोच रहे ना कि नवकार मंत्र में सिर्फ पांच परमेष्ठि भगवान हैं, हम नहीं हैं। आज पुरुषोत्तमाणं पद के माध्यम से मुझे आपको नवकार मंत्र में एडमिशन दिलाना हैं। आपका आईकार्ड चाहिए। नवकार मंत्र में नमो शब्द पांच बार आता हैं। यह शब्द किसके लिए वापरा जाता है? अरिताणं अरिहंत के लिए, सिद्धाणं सिद्ध के लिए ऐसे पांचों पद स्वतंत्र हैं। नमो शब्द किसके लिए वापरा गया? नमो अर्थात नमस्कार कौन करता है? हम करते हैं ना? तो नमो शब्द हमारा पर्याय हुआ या नहीं? आप तो स्वयं का अस्तित्त्व स्वीकारते ही नहीं हो। यद्यपि नवकार मंत्र में पंच परमेष्ठि भगवान एक-एक बार है और आप पांच बार हो। स्वयं शब्द से साक्षी 59:.
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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