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________________ भरतचक्रवर्ती जब सारे आभूषण उतारने लगे तो उनको तैयार करनेवाले ब्यूटिशीयन ने कहा, महाराज! क्या कर रहे हो आप? केवल एक अंगूठी नहीं पहनाने की गलती पर आप नाराज हो गए। महाराज! मुझे क्षमा करो। भरत जी ने कहा, तुम्हारी कोई गलती नहीं है, मुझे तैयार करनेवाला बदल गया। उसने कहा, मेरी जगह कौन ले सकता है? भरत ने कहा, तूं मुझे बाहर से तैयार करता था, आज मुझे वह मिल गया जो मुझे अंदर से तैयार करता है। आज मैं तीन चीज देख रहा हूँ। अंगूठी, भरतचक्रवर्ती का शरीर और उसे आईने में देखनेवाला। शरीर पर लगे हुये आभूषणों को धारण तो शरीर करता है पर उस शरीर को देखने वाला है कौन? कौन देखता है इस शरीर को? आभूषणों को देह सुशोभित करता है या देह को आभूषण सुशोभित करते है। वस्तु का मूल्य अधिक है या मॉडेलिंग करनेवाले का? भरतचक्रवर्ती सयं संबुद्ध हो गए। आईने में देखते-देखते केवली भगवान हो गए। कौशांबिक नगरी के महाराजा शतानीक की बहन श्रमणोपासिका जयन्ती, जो जैन इतिहास में जिज्ञासामूलक प्रश्न करनेवाली स्त्रियों में प्रमुख स्थान रखती थी। उसने एकबार प्रभु से पूछा था, प्रभु! जीव प्रसुप्त (सोये हुये) अच्छे है या जाग्रत? भगवान महावीर ने कहा, जो व्यक्ति धर्मनिष्ठ, बलवान और उद्यमी है वे जाग्रत अच्छे है। जो आलसी है वे प्रसुप्त अच्छे हैं। भगवती सूत्र का यह कथन यही समझाता है कि जो सोयेगा वही तो जागेगा। जो जाएगा वही तो पाएगा। परंतु सोना भी तो आना चाहिए। यहा कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें बिना औषधि के नींद आती हो। हमारे बडे म.सा. एक बहुत अच्छी बात कहते थे कि, सोना मिलता है तो सोना चला जाता है। एक कहावत कहते थे, सोना तू तो बडा चुगल्ला, तूने हमको ख्वार किया, तू तो बैठा रंगमहल में, हमको चौकीदार किया। हमारी दैहिक सिस्टम सोने के साथ चार अवस्थाओं में बांटी जाती है। पहली है निद्रावस्था - ज्ञानी, अज्ञानी सोते सब है परंतु सब के सोने और जगने की व्यवस्थाए अलग है। इसलिए गीता में कहा है, जगत् जब , सोता है तब ज्ञानी जगते है अर्थात् जब ज्ञानी जगते है तब जगत् सोता है। नरसिंह मेहता ने कहा है, जागीने जोऊं तो जगत दिसे नहीं, ऊंघमा अटपटा भोग भासे। दूसरी है स्वप्न अवस्था - निद्रा में जो दिखता वह स्वप्न है। स्वप्न के भी दो प्रकार है। निद्रा स्वप्न और दिवास्वप्न। जगत् निद्रास्वप्न को तो स्वप्न मानता है परंतु दिवास्वप्न को सत्य मानना बहुत बड़ी गलती है। वह भी एक स्वप्न हैं। साक्षी भाव में रहने से दोनों स्वप्न के भेद और भ्रम टूट जाते हैं। तीसरा है सुषुप्ति अवस्था- जब स्वप्नावस्था टूट जाती है। जैसे की देखने को कुछ बचा ही नहीं हैं। नाटक पूरा हो गया सब घर लौटने लगे। मॉ ने बच्चे को उठा लिया। उसे जगाने लगी, लोरी गाने लगी। किसी पूछा था, अभी कुछ समय पहले तो जब बच्चा खेल रहा था तूने पीठ थपथापकर लोरी गाकर सुला दिया और अब उठाक्यों
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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