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________________ आदि अर्थात् प्रारंभ। इसे महत्त्वपूर्ण इसलिए माना जाता हैं कि, जिसका प्रारंभ महत्त्वपूर्ण होता है उसका मध्य और अंत भी महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे आपने देखा होगा कि, कौरस में गानेवालों में गीत प्रारंभ करनेवाला महत्त्वपूर्ण होता है। इसमें गीत प्रारंभ करनेवालें की लय और राग महत्त्वपूर्ण होता है। लय जैसी होती है कौरस की सरगम उसी लय में प्रगट होती है। नमोत्थुणं की लय नमोत्थुणं शब्द से शुरु होती है और उसकी लयबद्धता आईगराणं में समाकर सिद्धालय में संपन्न होती हैं। आइए अब हम हमारे भीतर आईगराणं पद की स्थापना करें। तित्थयराणं पद में प्रवेश करें। हमारे निजतीर्थ में तीर्थंकर को आमंत्रित करें। नमोत्थुणं के द्वारा अनंत गणधरों का हमें अनुग्रह प्राप्त होता है। सुख देते है तीर्थंकर परमात्मा, शाता उपजाते है गणधर भगवंत और सुख और शाता पूछते है शक्रेन्द्र भगवान । अब हम उस सुख शाता की अनुभूति करने के लिए दो मिनिट का बिल्कुल सीधे बेठ कर नमोत्थुणंअरिहंताणं भगवंताणं, नमोत्थुणंआइगराणं पद के द्वारा आइगराणं परमात्मा को अपने नमस्कार देकर उनको मन ही मन प्रार्थना करेंगे अंत तो तू करने वाला है विश्वास है तो आदि भी तू ही कर देना । परमात्मा हममें दुःख का अंत और सुख और शाता की आदि कैसे करते है इसका अनुभव करें। ..नमोत्युणं आईगयणं.. -नमोत्युणं आईगराणं.. --मन्मोत्युणं आईगराणं..
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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