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________________ दर लेते ही आनंदधन जी पुन; बुखार से भर गये । यशोविजय जी महाराज कहते हैं कि भगवन ! इसीतरह परमाणुओं को भरकर ये चद्दर हमें दे दो हम इसको पानी में धो देंगे तो सारे बुखार के परमाणु निकल जाऐंगे। आनंदघन जी महाराज ने कहा मुझे मेरे कर्माणुओं का भोग लेने दो। मुझे इसके लिए कोई प्रयत्न करने की जरुरत नहीं है क्योंकि इन कर्माणुओं को सहनकर करने का सामर्थ्य मुझ में है । प्रवचन के कारण मुझे ये प्रयोग करना पडा I ज्ञाता सूत्र में द्रव्य परिणमन का सिद्धान्त है कभी बैठकर सिद्धांत तो निकाल कर देखो आप। दूध में दहीं जान डालने से दूध दहीं बन जाता है यह हुआ दूध के द्रव्य का दहीं के रुप में परिणमन । कई पदार्थों में एक प्रोसेस होता है जो विधि पूर्वक जाने से वह परिवर्तन दिखाई देता है। जैसे दूध में घी निहित है परंतु चम्मच से ढूंढने पर वह कभी नही मिल सकता। दूध, दूध से दहीं, दहीं से छाछ, मक्खन और मक्खन से घी । इसतरह एक प्रोसेस है। इसीतरह आत्मा भी साधना के द्वारा सिद्धि पा सकता है। साधना एक प्रोसेस है। अरिहंत परमात्मा इस प्रोसेस के परम विधाता है । तीर्थ निर्माण करके परमात्मा संघ स्थापना के द्वारा इस प्रोसेस को प्रस्थापित करते है । यह प्रोसेस ऐसी व्यवस्था है जो आत्मा की अवस्था को आत्मस्थिति और आत्मसिद्धि पाने में सहायक होता है । I पुनश्च उस विकल्प को याद करें कि जिनके पास बैठने से हमारे सारे विकल्प शांत हो जाते है, हमारा अहं, मत, अभिप्राय टूट जाते है। वे अरि + हंताणं है अर्थात अरिहंताणं है। जिनके पास हमें हम न होने की अनुभूति नहीं होती है वे अरिहं + ताणं है अर्थात अरिहंताणं है। जिनके पास हमे अरिहंत होने की अनुभूती होती है वे अरिहंत + आणं है अर्थात अरिहंताणं है। ऐसे अरिहंत परमात्मा के चरणों में नमस्कार करते हुये नमोत्थु अरिहंताणं का मालकोस राग में जप करते हुये ध्यानस्थ होते हैं। सीधे बैठीए आँखे बंद कीजिए, मंद मंद श्वास प्रश्वास के साथ देह को शिथिल कीजिए । || नमोत्थुणं अरिहंताणं || नमोत्थुणं अरिहंताणं || नमोत्थुणं अरिहंताणं ॥ 29
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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