SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्ष नहीं हो पाता है। आपको यदि देवलाली से राजकोट जाना हैं पर यहाँ से कोई सीधी ट्रेइन राजकोट के लिए नहीं है। इसके लिए आपको मुबंई होकर जाना पडता है। काठियावाडी में एक कहावत हैं, वाया वीरमगाम। जहाँ हम डायरेक्ट नहीं जा सकते वहाँ वाया जाना पडता है। इसके लिए बायपास शब्द का भी उपयोग होता है। यह सब मैं आपका उत्कर्ष बढाने के लिए कहती हूँ। जहाँ डायरेक्ट नहीं हैं वहाँ वाया का उपयोग करते हैं उसीतरह मोक्ष जाने के इस काल में भरतक्षेत्र में डायरेक्ट व्यवस्था नहीं है परंतु वाया व्यवस्था हैं या नही हैं सोचा कभी इस बारे में? वाया व्यवस्था बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। वह हैं वाया महाविदेह क्षेत्र। महाविदेह क्षेत्र से आज भी अभी भी मोक्ष प्राप्य हैं। निर्मलदशा प्रगट कर पूर्ण पुरुषार्थ के साथ प्रबल पराक्रम द्वारा मोक्ष सुलभ है। समय और क्षेत्र की दुहाइ देकर पुरुषार्थ कमजोर कर हाथपर हाथ धरकर बैठे रहना अनुचित है। कलियुग के कुछ लोग इसकाल में या यहाँ से मोक्ष नहीं हैं। इस कथन का गलत प्रयोग करते है। यहाँ से मोक्ष नहीं जा सकते इसलिए पुण्य प्रवृत्ति करे और देवगति को प्राप्त करे। कालचक्र का छठा आरा इसीतरह पूरा करना होगा। ऐसा सोचना समय और क्षेत्र की मजबूरी नहीं कमजोरी है। यहाँ से राजकोट की डायरेक्ट ट्रेइन नहीं हैं पर दिल्ली की तो है। इसलिए दिल्ली चले जाय ऐसा हो सकता हैं क्या? दिल्ली जाओगे या वाया मुंबई -राजकोट ही जाओगे? महाविदेह क्षेत्र का कन्सेप्ट हमारे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। हमें यह सोचना होगा कि हम ऐसा क्या करें जिससे हम महाविदेह क्षेत्र पहुंच सके। मुत्ताणं मोयगाणं से नमस्कार कर भावना करते हैं कि हे सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ! मेरा मोक्ष स्पष्ट करो। डायरेक्ट नहीं तो वाया सही मुझे मार्ग अवश्य चाहिए। मेरी आगामी यात्रा के मालिक आप हो। मेरे मोक्षरथ के सारथि आप हो। मेरा पूर्ण समर्पण आपके चरणों में हैं। आप अपने मुत्ताणं हो, तो मेरे मोयगाणं भी हो । अपनी इस मोयगाणं पद की मर्यादा में मुझे सामिल करलो। मेरा मार्गदर्शन करों। स्वयं परमात्मा मुक्त स्थिति का अनुभव करते हुए भी केवलमात्र पूर्व कर्म के अनुसार वर्तते हैं। इसीलिए उनसे यह पूछनेपर आपका जीवन के प्रति क्या अभिप्राय है? परमात्मा ने कहा, पुव्वकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे। पूर्व कर्म के क्षय करने के लिए इस देह को धारण किया है। पूर्व के ऐसे कौनसे कर्म हैं जिस कारण यह देह धारण करना पडा? तीर्थंकर नामकर्म निकाचन होने के बाद परमआत्मा को तीन जन्म धारण करने पड़ते हैं। जब तक उस नामकर्म का संपूर्ण उपभोग न हो तब तक मुक्त अवस्था नहीं हो सकती। पूर्वोक्त शब्द का प्रयोग कब हो सकता है? सामान्यत: हम दुःख के समय में ऐसे शब्द का प्रयोग करते हैं कि किए हुए कर्मों को भोगे बिना छूट्टी नहीं है। भरा पूरा अनुकूल आज्ञाकारी परिवार, प्रतिष्ठा और समृद्धि हो तो मुक्ति के विचार कहाँ आते हैं। कब छुटू संसार से ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। प्रभु ने ऐसा क्यों कहा? उनकी अपार समृद्धि को तो आप जानते हैं। सुवर्ण रजत का रत्नमय समवसरण हो विहार करते समय मृदु सुवर्णकमलपर चरण रखे जाते हो। ६४ इंद्र जिनकी सेवा में हो। गणधर अपने विशाल साधु-साध्वी परिवार के साथ जिनकी सेवा में सदा उपस्थित हो। उन परमात्मा का जीवन का अभिप्राय पूवकर्म के कारण कैसे हो सकता है। जन्म से तीन भव पूर्व सभी जीवों की शासन रसिक बनाने की प्रबल भावना से इस नामकर्म का बंध होता है। विपाकोदय के समय तीर्थ की स्थापना, संघ व्यवस्था आदि इसी 229
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy