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________________ हैं। भगवान को केवलज्ञान होते ही समवसरण लगता हैं। समवसरण में पधारते ही गणधर नामकर्म वालों को त्रीपदी दान करते हैं। सुंदर, शुभ, शुद्ध वातावरण देखकर हम वहाँ पहुंच जाते हैं तब प्रभु हमें कभी नहीं कहते हैं कि यह गणधरों की सभा हैं। शिघ्र ही चतुर्विध संघ का आयोजन कर हमारे बुद्धत्त्व को प्रगट करने की योजना बनाते हैं। इस अनंत सृष्टि में पूर्व में जो तीर्थंकर हो गए, वर्तमान में जो हैं और भविष्य में जो होंगे सब यही कथन करते हैं। आचारांग में कहा - जे अईया, जे पडुवन्ना, जे आगमेस्सा अरहंतो भगवंतो ते सव्वे... जिससे हमारा बुद्धत्त्व प्रगट हो। हम भक्त से भगवान बन जाए। भक्त हमारी वर्तमान पर्याय है। परमतत्त्व हमारा भविष्य कथन करते हुए हमारी सिद्ध पर्याय की उद्घोषणां करते हैं। इस उद्घोषणा को, इस कथन को, इस आख्यान को इस प्रज्ञापना को, प्ररुपणा को बोध कहते हैं। नेता बोलते उसे भाषण कहते हैं। साधु-साध्वी बोलते उसे व्याख्यान कहते हैं। शिक्षक कहते उसे लेक्चर कहते । भगवती सूत्र में आता हैं बोधि का बोध प्राप्त करनेवाला बुद्ध होता है। चौथे गुणस्थान में सम्यकबोधि होती है। दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से केवलबोधि होती है । दृष्टाभाव से ज्ञाताभाव में आकर निरंतर रहनेवाला सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर परिनिर्वाण को प्राप्त होता है । हमें बुद्धाणं बोहयाणं को नमस्कार करते हुए भावना करनी हैं कि हमें ऐसा बोधज्ञान हो परमात्मा बोधि हममें प्रगट हो। परमात्मा उपदेश, आदेश और संदेश तीनों परिणामत्रय बनकर हमारे मोक्ष का कारण बन जाए। मुत्ताणं मोयगाणं की उपासना के लिए परमउपास्य प्रगट होने की बिनती करते हैं। बोध, बोधि, संबोधि हमें समाधि दे और हममें सिद्धि प्रगट करे । ।।। नमोत्थुणं बुद्धाणं बोहयाणं II! ।। नमोत्थुणं बुद्धाणं बोहयाणं ।।। || नमोत्थुणं बुद्धाणं खोहयाणं ।।। 227
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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