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________________ होती है। जानने में कोई सक्रिय प्रयास नहीं परंतु बौद्धिक अनुप्रास होता है। सीखने में कला का अविष्कार होता है। अंतिम करनेवाली प्रक्रिया अजीब होती है। एक बडा मचान होता है। स्विमिंग करनेवाले उसपर से छलांग लगाकर पानी में गिरते हैं देखना आसान है। लगता है कुछ खास बात नहीं। सीखते समय स्वीमिंग सीखाने वाले गुरु हमें मचानपर ले जाते हैं। तैरते हुए तैराकियों को दिखाते हैं। तैरते समय हाथ पांव कैसे हिलाने चाहिए ऐसा सीखाते हैं। जब तक कि हम इस बारे में कुछ सोचे, समझे, जाने, देखे तबतक तो गुरु हमें धक्का लगाकर पानी में फेंक देते हैं। पानी में गिरते ही स्वयं का ज्ञान प्रकट हो जाता है। थियरी से ध्यान हटकर प्रेक्टिकल सुरु हो जाता है। पहली क्षण कितना अजीब लगता है। यही तो अंतर है माँ और गुरु में। माँ मचानपर ही चढने नहीं देती कही मचानपर से बच्चा गिर न पडे। गुरु प्रेम से मचान पर चढाते हैं और दुगुने प्रेम से धक्का लगाते हैं। "आत्मार्थी गुरुदेव मोहनऋषीजी म. सा. कहते थे, तैरने के लिए डूबना पडेगा, और डूबना हो तो मत पूछना पानी कितना गहरा है। तैरने के लिए पानी की गहराई जानने की जरुरत नहीं है। किनारे को जान लो। देखो कि अपना हौसला कितना है। उमंग और उत्साह कितना है। इसे ध्यान में लो। दीक्षा लेना अर्थात संसार समुद्र को तीर जाना है । यह मत पूछना कि मार्ग कितना कठिन है। कितना लंबा है। ऐसा सोचने से तो मार्ग बोझील बनता है। संयम को बोझील नहीं मोझील बनाओ।" गुरु से धक्का लेकर पानी में गिरते ही हम कुशलता से दूर निकल जाते हैं। कभी कोई कुशल शिष्य गुरु की नजरों से ओझल भी हो जाता है। हमें अपनी कुशलता का और प्रवीणता का अहं हो जाता है। हमें लगता है हम पूर्ण पारदर्शी हो रहे है। अब तो हम कुशल तैराकी एवॉर्ड भी ले सकते हैं। इतने मे तो एक ऐसी तरंग आती है। जो हमें विह्वल कर देती है। वातावरण में विप्लव मचा देती है। गुरु अब दूर लगते हैं। अब याद आते हैं तिणाणं तारयाणं। अब तो केवल मात्र परमात्मा ही तार सकते है। परतमात्मा की तारने की विधि दो प्रकार की है १) तीर्थ के जहाज में स्थान देकर पार उतारते हैं। २) परमात्मा समुद्र को सोख लेते हैं। भक्तामर स्तोत्र में मुनि मानतुंगाचार्य कहते हैं, परमात्मा ! संसार के कुछ लोग ऐसे हैं जो पानी से ही डरते हैं। तीरना है पर तैरने की हिम्मत नहीं है। प्रभु ! उनको तारने के लिए आपकी उस कला को नमस्कार है। तुभ्यं नमो जिनभवोदधि शोषणाय। भवसमुद्र का शोषण करनेवाले हे परमात्मा ! आपको नमस्कार है। घर छोड़ने के बाद अकेली मीरा को देखकर किसीने पूछा कि, इस तरह अकेले आप कैसे भवसागर पार करेगी? तब मीरा ने बहुत अच्छा कहा, मेरे भगवान ने मेरे भवसागर का शोषण कर लिया है अब चिंता किस बात की। भवसागर सब सूख गयो है, फिकर नहीं मोहे तरनन की..... प्रारंभ करो आज से ही। सुबह उठो तो एक ही भाव के साथ उठो कि इस गहरे संसार से परमात्मा मुझे तार 219
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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